"मीठे बच्चे... अपना बाबा सबसे बड़ा मूर्तिकार है अगर वो रोज मणके बना रहा है, मूर्ति सजा रहा है, तो हथौड़े तो लगेंगे। तो एकदम मजबूत पावरफुल पत्थर बनना है, बाप को कभी नहीं छोड़ना क्योंकि बाप अच्छी तरह जानते हैं कि ये मूर्ति कितनी अच्छी बनानी है"
ओम शांति! ठीक हो! वाह वाह! कितना बढ़िया लग रहा है ये बैच देखो! ये देखो छोटा सा... ये नकली के हिरे हैं ना? अपने जमाने में असली के हीरे हुआ करते थे नकली के नहीं। वाह कितना इन्वेंशन हो गया ना साइंस ने कितना इन्वेंशन कर लिया। पेहले कैसे बनाते थे इसको? सुई धागे से। जैसे कढ़ाई निकलते हैं ना सुई धागे से... नहीं मालूम? सुई धागे से निकालते हैं, इधर ओम बनाते थे इधर, हाँ बढ़िया अच्छा लगता था। धागे से, निकाल के वो होता है ना उससे बना बना के पेहले किस-किस पे ऐसे ॐ लिखते थे। पहले बच्चियाँ भी ऐसे कपड़े पहनती थी ऐसे... (शर्ट पैंट? ) हाँ स्कूल था ना स्कूल में बच्चियाँ भी ऐसे पहनती थी। इधर "ॐ" लिखाते थे। कितना अच्छा लगता था सबके इधर "ॐ" हाथ से बनाते थे। मेजॉरिटी बच्चियों को कढ़ाई आती थी पहले। सबको आता था सुई धागा। कपड़े भी अच्छे अच्छे सिलते थे कई कई वाले सुई धागे से डिजाइन निकाल निकाल के। अच्छा लगता था। एक बार पॉकेट पे बना के देखो! इनको(मैया को ) भी आता है। बड़ा अच्छा अच्छा निकालती थी ये भी। तो लेके आना...ये "ॐ" पॉकेट पे बनाके लिखके देखना अच्छा लगेंगा देखना धागे से। धागा पक्के वाला लेके आना जिनका रंग नहीं निकले। अच्छा सभी ठीक हो। खुश हो!
बच्चे, अगर आप यहाँ से एक सामान उठाके वहाँ पर भी रखेंगे तो उसमें भी पदम है। अब आप एक बर्तन साफ करेंगे, उसमें भी पदम है। जो बापके लिए किया उसकी छत्रछाया में किया। अब बच्चियाँ सोच रही होंगी, हमने तो बहुत पदम जमा किए है। कितने जमा किये अब यहाँ देखो सभी राजा बच्चे बैठे हैं। जैसे-जैसे सतयुग त्रेता आएंगा तो सब अपने अपने राज्य के मालिक बन जाएंगे। बाबा किसकी माला बना रहे हैं? माला बन रही है,बाबा मणका तैयार कर रहे है ना....। अपना मेहनत इतना करो पुरुषार्थ इतना करो, इतनी लगन से कि बाबा जो आप कहो...। जैसे मानो एक मूर्तिकार होता है वो जब पत्थर लेके आता है उस पत्थर की कोई कीमत नहीं होती वो हर एक पत्थर को चेक करता है, कि ये ठोस पत्थर है, या एक हतोड़ी में टूटने वाला है। तो मूर्तिकार क्या करता है? छैनी से हथौड़ी से बारीक तरीके से उस पत्थर की मूर्ति बनाता है। अगर एकदम मजबूत पत्थर है, मजबूत पावरफुल है तो उसकी मूर्ति बड़ी खूबसूरत बनेंगी, टूटेगी नहीं बिल्कुल नहीं टूटेंगी। कहाँ-कहाँ मूर्तियाँ कैसी होती है? जैसे बाप उनको सजा रहा होता है ना, बना रहा होता है तो जब लगा एक थोड़ा सा हथौड़ा लगा टूट गई। गलती किसकी है? मूर्ति की है, मूर्तिकार की नहीं है, क्योंकि वो अपना काम कर रहा है। अपना बाबा सबसे बड़ा मूर्तिकार है। भई रोज अगर मणके बनाएंगा तो हथौड़े तो लगेंगे। है ना? अब हर चीज में टूट जाना, नहीं, मुझसे नहीं होंगा हमने छोड़ दिया। बाबा को छोड़ना माना टूट जाना। बाबा को छोड़ना ही टूट जाना है। नहीं हमसे नहीं होंगा, हम नहीं कर सकते, हमारे अंदर सहनशक्ति नहीं है, तो मतलब टूट गए। और एक पत्थर वो भी होता है जो एकदम मजबूत, पावरफुल, मेरे बाबा चाहे पत्थर मार, चाहे सिर फोड़, चाहे हाथ तोड़, आपको छोड़के नहीं जाएंगे। आपको कभी नहीं छोड़ेंगे क्योंकि मुझसे ज्यादा आप जानते हो कि मेरी शिकिल कितनी अच्छी बनेंगी, मेरी मूर्ति कितनी अच्छी बनानी है। अब एक बात बताओ, जो पत्थर टूट गया, उसको क्या मिलेंगा, कुछ मिलेंगा? उसकी पूजा होंगी? नहीं होंगी ना? भल थोड़ा-बहुत आपने किया तो उसकी कमाई जमा हो गई । भल कलयुग में थोड़ी बहुत प्राप्ति होंगी, पूजा हो जाएंगी, जैसे पत्थर की पूजा हैना! ईंट की पूजा! कमजोर कमजोर चीजों की पूजा होती है ना, ऐसे कलयुग में पूजा हो जाएंगी। द्वापरयुग में पूजा हो जाएंगी। पर असली मूर्ति की पूजा मंदिरों में होती है, जब मूर्तिकार अच्छे से शकिल बनाता है। मूर्ति किसकी बनती है? बाबा जो आप कहो, जहाँ आप बिठाओ, जो आप खिलाओ, आप मेरेको मारो या पीटो मैं तो छोड़के नहीं जाऊँगा। ये है... क्योंकि देखो मूर्तिकार को कौनसा नक्शा देना है, कौनसी शेप देनी है ये तो वही जानता है ना। हम तो नहीं जानते हमारा भाग्य कैसा होगा? हम देखते हैं अरे मेरी आँख में हथौड़ी मार दी, मेरा कान टेढ़ा कर दिया है ना। बाबा को ही सिखाते हैं कई बारी, बाबा नहीं नहीं नाक सीधी बनाओ मुझे ये पसंद नहीं ये वाली पसंद है। केहते हैं ना सेवा में, नहीं मुझे ऐसी चीज पसंद नहीं, मुझे ये पसंद है, मेरे हिसाब से बनाना चाहिए। तो बाबा कहेगा चलो आप के ही हिसाब से बनाएंगे, पर पूजा आप जो सोच रहे हो, वहाँ नहीं कराएंगे !
भई जो अपने हिसाब से मूर्ति अपनी बनवाएंगा तो उसके पुजारी भी उसी के हिसाब से होंगे, थोड़े बहुत होंगे, ज्यादा नहीं होंगे। ज्यादा कैसे होंगे, जब आप अपनी मूर्ति बनवाने में इंटरफियर कर रहे हो। इतना बड़ा चित्रकार जो सारी दुनिया को रचता है, उसको बैठके केहते हैं, बाबा मुझे ये पसंद नहीं है, मुझे ये पसंद है। मुझे ये कपड़ा पसंद नहीं है, मुझे ये पसंद है। मुझे ये पसंद नहीं है मुझे वहाँ जाना पसंद है। मैं यहाँ नहीं कर सकती ये सेवा, या मुझे ये सेवा पसंद नहीं है। तो बाबा कहेंगा ठीक है,आपकी मनपसंद का एक अलग से कोने में एक राज्य बना देंगे उधर रहना। और जो बच्चे कहते हैं बाबा आप जो बनाओ... जो पहनाओ जो खिलाओ, जहाँ रखो जमीन में रखो या पट पे रखो या फिर ऊपर रखो, हमें स्वीकार है।तो उन बच्चों को क्या कहेंगे। बाबा उस बच्चे की मूर्ति भी कैसी बनाएंगा, ऐसी ही बनाएंगा और उनको मंदिर में बिठाएंगा,बड़े मंदिर में बिठाएंगा जहाँ पूरे चारों तरफ के भक्त पूजा करने आवे। जहाँ हर तरफ जय जयकारा होवे तो इसलिए क्या करना है? जो चित्रकार कहे "हाँ जी" समझे? क्योंकि अपना चित्रकार इतना बढ़िया है ना!! हम अपने हिसाब से अपनी नाक को टेड़ी भी कर लेंगे, टेढ़ा-मेढ़ा बना देंगे और जो वो अपने हिसाब से मूर्तियाँ बनाता है.... कभी देखा मंदिर में जाके लक्ष्मी नारायण की शिकीलियाँ कितनी अच्छी है? है..? आज कोई भी बना सकता है ऐसे!! वो तो एक कॉपी बनाया है जो रियल होंगे, वो कैसे होंगे आप सोचो। यहाँ के बच्चे तो उस दुनिया के देवताओं की कॉपी तक नहीं कर सकते, वो रंग नहीं दे सकते,वो रूप नहीं दे सकते, वो शिकिल नहीं दे सकते।
अच्छा आपने बच्चों कभी सोचा आजकल भी आज के समय में भी कहाँ -कहाँ ये जो शरीर है किसी किसी का इतना सुंदर होता है, सोचो इतना सुंदर एकदम एक्यूरेट। वो किसी इंसान ने बनाया? नहीं...। किसने बनाया? प्रकृति ने बनाया उस चित्रकार ने बनाया। तो अब ये सोचे कि सतयुग में वो चित्रकार हमें कैसा नक्शा देंगा। इसलिए सब छोड़ दो उसपे, जब बाबा बार-बार बेफिक्र बनाता है, बच्चे मैं गारंटी करता हूँ - इस जन्म में भी आपको भूखे नहीं रहने दूँगा...अगले जन्म की तो आप बात ही छोड़ दो। अगले जन्म में तो पूरे 21 जन्मों का वर्सा जरूर दूँगा। इसलिए अपना चित्रकार आया है, मूर्तिकार आया है। जैसे देखो, इस प्रकृति को गहराई से देखना जैसे कोई फूल होता है ना रंग-बिरंगे होते हैं, कोई लाल होता है, कोई पीला होता है, होता है ना? विचार करना वो किसने बनाये है? फूल तो है,अच्छा फूल तो बन गया पर उसमें अलग-अलग तरह की खुशबू कैसे आई सोचो!! अच्छा फिर उसमें अलग-अलग तरह के रंग कहाँ से आए? सोचा कभी? प्रकृति अपने आप में कितनी खूबसूरत है, उसको बनाने वाला कौन है? जब पूरे प्रकृति का इतना सुंदर चित्र बना सकता है तो अगर हम उसके बच्चे हैं,तो हमारे वो कैसे बना सकता है! इतनी सुंदर प्रकृति को उसने बना दिया। पूरे संसार को उसने... आज के समय में भी कहाँ -कहाँ ऐसे स्थान है जहाँ प्रकृतिक सौंदर्य इतना खूबसूरत है, आज के कलयुग के समय में भी । तो जब कलयुग में इतनी सुंदर प्रकृति है तो सतयुग में तो बहुत खूबसूरत होंगी। इसलिए हर घड़ी "शुक्रिया" करना है। बाबा मैं अपने आपको पहले इतना पक्का मजबूत बनाऊँगा, आपको जैसा बनाना है जैसे भी बनाना है ऐसे आप बना देना। क्योंकि अगर मूर्ति ने अपना इंटरफियर दिखाया तो नंबरवार पूजा होंगी... नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार। और अपने आपको सौंप दिया- "बाबा मैं जो हूँ, जैसा हूँ , कैसा भी हूँ ,अच्छा हूँ , बुरा हूँ,आपका हूँ जो आप कहें।" इसलिए आजसे ये सोचो कि ये पूरा संसार किसका है? अपना है।
आप सोचो ये मेरा मेरा करते-करते कितने चले गए। अपन को बड़ी हँसी आती है भई। मेरा मेरा करते-करते कितने चले गए और कितने चले जाएंगे! जो बोलते हैं हम भारत के या पूरे संसार के सबसे बड़े अमीरजादे हैं।अच्छा... कब तक है? ऊपरसे नहीं जानेका टप्पा थोड़ी लगाया है कि भई ये ठप्पा लगा रहे हैं कि आप बहुत अमीर रहेंगे और आप को मरना नहीं है। जाना तो पड़ेगा ये फिक्स है। ये बात फिक्स है ड्रामा की एकदम! "आना और जाना"... "आना और जाना"। वंडरफुल कहानी है पर अच्छा बड़ा लगता है।
आजकल के बच्चे क्या करते हैं? रावण का राज्य ही कहेंगे जो मोह में फँसे होते हैं। किसी भी कारणवश जब कोई शरीर छोड़ जाता है तो शिकीलियाँ बिगड़ जाती है, रोने लगते हैं, हमारा अपना चला गया। यही कहते हैं ना हमारा अपना चला गया। किसलिए शिकीलियाँ बिगड़ी विचार करो? वो अब आपका था,वो पहले किसका था, अब किसका होगा? तो...? वंडरफुल चक्कर है, समझ लिए तो राजा नहीं समझे तो बुद्धू। नहीं समझे तो मुर्दे जैसे और समझ गए तो एकदम महाराजा जैसे। ऐसी जिंदगी जीना है बेफिक्र होकर के। विनाश किसका होगा? क्या कहते हैं हम - "बाबा विनाश होगा"। बड़ी खुशी में बोलते हैं खुशी खुशी से पूछते हैं, नाँच नाँच के पूछते हैं। क्या पूछते हैं पता है-- "विनाश कब होगा?" ऐसे पूछते हैं। "डेट बताओ... फिक्स करो"। वो जो इतना बाहर बारी-बारी जो बच्चे पूछते हैं, विनाश कब होगा, हम बहुत दुखी हो गए, विनाश कब होगा? अच्छा अगर उनका पड़ोसी चला गया या उनके घर में से कोई चला गया तो क्या बोलते हैं - "भगवान तेरे से बड़ा बुरा कोई नहीं है"। दुनिया का पूछा तो विनाश पूछते हैं, पर ये क्यों नहीं सोचते कि विनाश अर्थात हमारे लौकिक में भी जा सकते हैं। जिससे आप बहुत ज्यादा प्यार करते हैं, पहले उसको भी ले सकते हैं और खुद को भी ले सकते हैं। यही विनाश है "आप मुए मर गई दुनिया"। और जब शुरुआत करते हैं, जब आसपास से लेते हैं तो कहते हैं मैंने ये थोड़ी बोला था कि हमारे घर वालों से उठा लेना। ऐसे थोड़ी होता है!! मतलब अपना...अपना और दूसरों को मरने की दुआएं करते हैं और पूछतें है कि विनाश कब होगा? विनाश होगा तो क्या हम बचेंगे !! हाँ बाबा ने कहा है कि मरने की स्थिति परिस्थिति चेंज हो जाएंगी। हम बच्चे भी तो जाएंगे ना... अपन तो पहले ही जा चुके हैं। जाएंगे ना? सोचो... लेकिन उसमें एक बहुत बड़ा फर्क होंगा विनाश में जो दुनिया पाप कर्म कर रही हैं, आज देख रहे हो...क्या कहा था? कोई किसी को जलाने वाला भी नहीं बचेंगा, कोई किसी का संस्कार करने वाला भी नहीं बचेंगा।है कोई ? सब लाइन में लगे हैं। अभी मेरे वाले की बारी है... अभी मेरे वाले की बारी है उनको नंबर देते हैं एक, दो, तीन, चार, पांच छे। (चार कन्धा भी नहीं मिलता बाबा अभी तो... ) मिल रहा है कुछ? ( संस्कार करने के लिए भी पैसा ले रहे हैं ) कितना घोर कलयुग !! इससे घोर कलयुग क्या आएंगा? जिन्दे की तो कदर छोड़ो मरने वाले की भी नहीं है। इससे घोर कलयुग है कोई और ? ऐसा इससे और घोर कलयुग आ सकता है? नहीं आ सकता है ना... तो? इसलिए यही विनाश है और ये विनाश देख रहे हैं। अब सोचो! अब अगला सीन बताते हैं-- अब तो कम से कम जला भी रहे हैं ,अब तो कोई मशीन से जला देते हैं, लेकिन आगे सब साइंस के साधन ठप्प, जलाने वाला भी नहीं बचेगा। तो पूरे संसार में ये शरीर सड़ने लगेंगे ऐसी स्थिति आने वाली है। और हाँ जैसे बाबा के बच्चे हैं, प्यारे बच्चे हैं अपने कर्मों से, अपनी याद से,अपने विचारों से बाबा उनकी छत्रछाया बना देंगा। जैसे दुनिया में क्या होता है? जब बहुत गर्मी पड़ रही होती है तो छाता निकालते हैं... लेकिन ऐसी स्थिति अब होने वाली है उनकी जो बापके बच्चे हैं... जो याद में रेहते हैं। कहते हैं ना जब बहुत तेज धूप होती है तो क्या लेते हैं? छाते से क्या होता है? बाबा क्या है? "छाता"! "बाप की याद" !! अच्छा दुनिया वाली छाता कितनी चीजों से मिलके बनता है सोचो? और जो बापकी याद का छाता है वो याद से, अच्छे कर्म से, प्यार से ज्ञान से धारणा से, सेवा से, इन सारी चीजों से बनता है बाबा की याद का छाता और वो परमानेंट आपका रहेगा। क्यूँकि उसके ऊपर जितना आपने उसमें.... जितना मोटा बनाएंगे उतना ही वो अच्छी घनी छाँव देंगा और उसपे आपका नाम लिखा जाएगा - ये फलाने का छाता है इसको कोई नहीं लेंगा। इसलिए बाबा यही कहेंगा इस दुनिया में भी अपने कर्मों पे ध्यान दो,अच्छे कर्म करो,अगर कर्म अच्छा नहीं हुआ तो छाते में छेद हो जाएंगा। जितना कर्म बुरा छाते में उतने ही छेद समझ में आया। और जब छेद होते हैं, तो ना बारिश को रोक पाते हैं,ना धूप को रोक पाते हैं। तो अपने कर्मों पर पूरा ध्यान देना है।
अटेंशन!! कोई भी ऐसा कर्म ना होवें, सबसे बड़ा पाप कर्म है हिंसा करना, हर तरह की हिंसा। आज की दुनिया में देखो कितना भ्रष्टाचार है, छोटी छोटी बच्चियाँ सेफ नहीं है । देखा...!! देखो दुनिया में बाप तो रोज देखते हैं। छोटी छोटी बच्चियाँ सेफ नहीं। एक दूसरे को मार देते हैं। कितना भ्रष्टाचार है। मारते तो ऐसे हैं जैसे चींटी को मार रहे हैं। इंसान को मारना ऐसा हो गया जैसे चींटी को मार रहे हैं। एक दो को ऐसे मार रहे हैं। बाप तो रोज देख रहे हैं तो इससे ज्यादा भ्रष्टाचार क्या होंगा। कितना पाप कर्म है, पूरा संसार दुख में चिल्ला रहा है,रो रहा है। बोलते हैं ना,अभी जैसे कोई भी चीज होती है तो सबको लाइन में लगा दिया। मंदिर में जाओ तो भी लाइन में, कुछ भी खरीदने जाओ तो भी लाइन में, कुछ लेने जाओ तो भी लाइन में, अब श्मशान में भी क्या हो गया? श्मशान में भी लाइन में जाओ। इससे बड़ा पाप कर्म क्या होंगा, इससे बड़ी दुर्गति क्या होंगी जो उस स्थान पर भी लाइन में लगना पड़े। आप सोचो! और बाप क्या केहते हैं बच्चे अगर आप बाप के प्यारे बच्चे हैं, अच्छे बच्चे हैं याद वाले बच्चे हैं,किसी को दुख नहीं देते हैं, तो उन बच्चों की छत्रछाया बाप करेंगा और उनके शरीर का संस्कार भी प्रकृति करेंगी। और जो प्रकृति करती है तो देखो! समझ में आया? और उनकी शरीर छोड़ने की कला भी बड़ी प्यारी होंगी। कैसे? बैठे रहो, "ॐ" करते रहो, उड़ गए। "ॐ" करते-करते उड़ जाएंगे, ध्यान में बैठे-बैठे उड़ जाएंगे। ऐसे तो नहीं मरेंगे! किसी का पूरे शरीर को खोल खोल के देख रहे हैं। काम की चीज है तो निकाल लो। सोते-सोते भी शरीर छूट जाएंगे ऐसी स्थिति होंगी। इतना अच्छे से शरीर छोड़ेंगे और शरीर में कोई भी ऐसा बीमारी से या फिर कुछ भी ऐसे शरीर नहीं छोड़ेंगे तो कितनी अच्छी मौत है! कितना शरीर भी छोड़ना एकदम आसान। आज आप देखो आज की स्थिति कैसी है? किसी को कोई बड़ी बीमारी लग गई। इससे बड़ी बीमारी कोई होगी अभी? देखो मालूम है ना? देखते हो ना टेलीफोन में रोज? नहीं देखा करो क्यूँकि मन खराब होता है, दुखी होता है इसलिए बैठकर के "ॐ" करना शुरू करो, ठीक है। रोज करना है, घरवालों को भी कराना है क्योंकि आज की स्थिति में अगर इन सब चीजों से दूर रहना है तो "ॐ" जरूरी करना है ओके।
अच्छा बच्चों बाप तो यही कहेगा सदा खुश रहो,भल दूसरा अगर दुखी है उसको मनोबल दो, मन की ताकत दो, पर उसको देख करके रोना, उसको देख करके दुखी होना ये अच्छे बच्चों की निशानियाँ नहीं है। उसको आप हिम्मत दे सकते हो, ताकत दे सकते हो, हौसला दे सकते हो, जीने की उम्मीद बढ़ा सकते हो। आप बच्चों का ये कर्तव्य है। उनको देख करके रोना ये चीज नहीं। हाँ पूछो!
हमें आज तक बोलते हैं कि बाबा से जो किरण निकलती है,रंग बिरंगी निकलती है तो बाबा की किरण कैसी हैं?
अच्छा है....!! देखो हर किसी की अपने अपने तरीके से याद करने की एक कला होती है। पहले भी जैसे बताया था। अगर कहते हैं ना, अगर पाँच अंधे हैं, उनको कहेंगे आप इस लाइट को याद करो, उनको सिर्फ सुनाई देता है पर दिखाई नहीं देता। सोचो वो अपने अपने मन में क्या क्या सोचेंगे। अच्छा लाइट लाल कलर की होगी, पीले कलर की होगी, जिसने जो सोचा उसने उस तरीके से याद किया पर किया तो लाइट को नाबस !! रंग-बिरंगी किरने कैसी होती है, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पर याद तो बाबा को किया ना। हाँ बस ये ठप्पा नहीं लगाना है कि नहीं लाल ही किरण है, नहीं...। या फिर किरण पीली ही है नहीं...। (जैसे वह बोलते हैं कि हरा किरण निकल रहा है,प्रेम का... ) ये किसी चीज पे ठप्पा नहीं लगा है क्योंकि बाप की किरने कैसे कैसे कलर की निकलती है, वो कौन जानता है और उनको पूछो दिखती है क्या? देखी आज तक कौनसे रंग की किरने निकली!! इस दुनिया के हिसाब से रंगो के नाम दे दिए । जो आंखों को ठंडक देने वाला हो, वो बोलते हैं परमात्मा से निकली हुई वो किरण है, क्योंकि परमात्मा कोई रिंग बिरिंगा नहीं है। वो कोई अलग-अलग ड्रेस थोड़ी पहनता है की आज काले कलर की पहनी, कल को पीले कलर की पहनी, फिर हरे कलर की पहनी तो रंग निकलेंगा। बड़ा प्यारा बाबा है, वो सिर्फ एक ऐसी ज्योति है,ऐसा प्रकाश है। ये अलग-अलग तरंगे बोलते हैं,अब ये ही तो पंडितों का काम हुआ। पंडित अर्थात क्या? आज के मंदिर में भी क्या करते हैं? भगवान को ऐसे याद करो। तो बोलतें हैं सत्य वचन महाराज। ऐसे बोलते है ना? फिर दूसरे मंदिर में जाएंगे या दूसरे गुरुद्वारे में जाएंगे, मस्जिद में जाएंगे क्या बोलेंगे अल्लाह को ऐसे याद करो सत्य वचन महाराज। जहाँ जिस मंदिर में गए क्या बोला सत्य वचन महाराज!! लेकिन है तो एक ना ! (वो लोग भी हाँजी का पार्ट बजाते हैं बाबा) तो पक्के बच्चे हैं ना! ये क्या हुआ दुनिया को इधर-उधर, इधर-उधर भटकाने वाला काम किया इधर से। अगर कहा यही भगवान है...अच्छा यही भगवान है... अच्छा चलो मान लिया यही भगवान है, ऐसे करते हैं। (बाबा मतलब याद की यात्रा महत्वपूर्ण है, चाहे ट्रेन से जाओ,चाहे बस से जाओ ) याद की यात्रा सबसे महत्वपूर्ण है, लेकिन अपने को क्या करना है प्लेन से जाना है। प्लेन से जाओ! क्योंकि ट्रेन ऐसे घूम घूम के घूम घूम के पहुँचाएंगी टाइम भी लगाएंगी और प्लेन में बैठेंगे सीधा!! तो अपने को क्या देखना है? जब अपने पास प्लेन है तो यूज करो ना ! जिनके पास नहीं है,वो तो ट्रेन में जाते हैं। वो पीछे पीछे आएंगे। ट्रेन वाले कौनसे होते हैं, घूम रहे हैं।अच्छा एक स्टेशन इधर भक्तिमार्ग, एक स्टेशन इधर अच्छा यहाँ पे आ गए इधर आ गए वो बैठते हैं ट्रेन में। ज्ञानी बच्चे भी ऐसे ही हैं निश्चय ही नहीं तो मतलब ट्रेन में बैठे हैं। कोई कोई तो पैदल भी चलते हैं। अब सोचो अच्छा कोई तो ट्रेन में बैठे हैं कम से कम पहुँच तो जाएँगे नंबरवार। जो पैदल चलने वाले हैं, वो सीधा परमधाम में जाएंगे। आप बच्चों को क्या मिला है? (प्लेन मिला है ) प्लेन बुद्धि होकर, प्लेन में बैठ जाओ, तो आपको पायलट बड़ी अच्छी जगह पहुँचा देगा। आपका पायलट कौन है? (शिवबाबा ) वो पायलट उसको पता है, कैसे चलाना है। बेफिक्र हो जाओ, सबके पास प्लेन है ना तो प्लेन में बैठो। कहते है नहीं नहीं थोड़ा और कर लेते हैं न सो जाते हैं तो ट्रेन में बैठ जाओ, सो जाओ, अच्छी रिजर्वेशन मिलेंगी सीट सोने वाली। लेकिन प्लेन में तो क्या होगा, बस पहुँचना है इसलिए अपनी बुद्धि को प्लेन बुद्धि बनाओ और प्लेन में बैठ जाओ ठीक है। और कुछ पूछना है।
बाबा अभी सभी लोग येही बोलते हैं कि भक्ति मार्ग शुरू कर दिया है "ॐ" ध्वनि कर के
उनको बोलो, अच्छा हुआ भक्ति मार्ग शुरू कर दिया। क्योंकि आप तो ज्ञान में भी नहीं हो और आप भक्ति भी नहीं कर रहे हो, तो आप दोनों के बीच में लटके हुए हो। अपना भक्ति तो शुरू हो गया। यथार्थ रीति से जानकर जो अगर ये कहते हैं कि हमने भक्ति मार्ग शुरू कर दिया तो उनको बोलो जो आपने ये शब्द कहा, भक्ति मार्ग शुरू कर दिया। आप पहले ये देखो कि आप कितना बापको याद करते हो, कितना मुरली सुनते हो, कितनी याद की यात्रा में रहते हो। दूसरों को देखते रहते हो, कौन क्या कर रहा है, कौन क्या कर रहा है? अपना पुरुषार्थ जीरो बटा जीरो। अब सोचो अगर कोई ये कहते हैं तो ठीक है।
भक्ति मार्ग का मतलब क्या है जानते हैं? ज्ञान मार्ग का... अगर मानो भक्ति मार्ग है जो बाप को नहीं जानते वो बिचारे भक्ति तो कर रहे हैं। उनको भल मालूम नहीं है कि बाप कौन है पर वो मंदिर में दिया तो लगा रहे हैं, घंटी तो बजा रहे हैं, गीत तो गा रहे हैं। कितने अच्छे हैं!! और ब्राह्मण बच्चे क्या कर रहे हैं? पूछो क्या चार्ट है क्या धारणाएं है? तो क्या कहेंगे ना तो भक्ति के ना ज्ञान के बीच वाले। बीच वाले कौनसे होते हैं बीच वाले बीच वाले ही होते हैं। जिनकी कदर नहीं है बताओ। देखो अगर जीवन में कोई मर्यादा नहीं, कोई नियम नहीं। ज्ञान बस इतना है कि बाप है, शिवबाबा है, परमधाम का निवासी है। इधर संसार को बदलने आए हैं। उसको भी एक्सेप्ट नहीं बस ये ज्ञान है। ज्ञान होने से क्या प्राप्ति मिलती है? क्या अगर आपको मालूम है इस फोन को ऐसे ऐसे खोलना है, ठीक है। सिर्फ इतना ही मालूम है कि खोलना है। बंद करने का मालूम नहीं है तो क्या होगा, किसी काम का है ये !! है किस काम का? खुला ही रह जाएगा। मालूम तो होना चाहिए कि खोल दिया तो उसको बंद कैसे करें, ये है ज्ञान। मालूम है... ज्ञान है... पर ज्ञान से क्या !! किस तरीके का ज्ञान है... तो क्या कहेंगे अभिमान में घूम रहे हैं कि हमें फोन खोलना आ गया, टेलीफोन खोलना आ गया... इतना अभिमान है। सच्चा ज्ञानी वो है जो खोलके बंद करके दिखावे। खोलने खोलने में क्या होता है? उनको तो बुद्धू कहेंगे, आप किसी काम के नहीं हो, और ही काम बिगाड़ के रख दिया। ऐसे ही तो होते हैं। सच्चा ज्ञानी क्या कहता है हर परिवर्तन को स्वीकार करें, हर घड़ी परिवर्तन को स्वीकार करें। ये होता है सच्चा ज्ञानी। अब बोलो भक्ति भी है तो हम ही तो थे द्वापरयुग में भक्त। भक्ति शुरू की तो सारा ड्रामा का शूटिंग संगमयुग पे ही हो रहा है। तो भक्ति कौन करेगा? भक्ति ही तो की ज्ञान और योग का प्राप्ति करके। सतयुग त्रेता में सारे जीवन का सुख ले करके अच्छा सा रेह करके कम से कम द्वापरयुग में आकर के भक्ति तो शुरू की एक सच्चा मार्ग तो दिखाया।
वो शूटिंग भी तो यहीं होनी है। और जो ऐसे बोलते हैं, वो कौन हैं? वो सबसे बड़े नास्तिक हैं। ना तो सच्चा सुख लेंगे सतयुग में और ना भक्ति की खुशी लेंगे द्वापरयुग में। तो उनको सबसे दुखी आत्मा कहेंगे - "ज्ञानी दुखी"। एक होते हैं, "अज्ञानी दुखी" और एक होते हैं "ज्ञानी दुखी"। एक होते "अज्ञानी मुर्ख" और एक होते हैं "ज्ञानी मूर्ख"। अब बराबर है भई, ज्ञानी भी मूर्ख ही होते हैं जिनका ज्यादा होता है। एक है "अज्ञानी मूर्ख"। "अज्ञानी मूर्ख" को तो आप सीधा भी कर सकते हैं पर "ज्ञानी मुर्ख" को आप कभी नहीं कर सकते, वो मूर्ख ही रहेंगा।
बाबा ये जो "ज्ञानी मुर्ख" हैं उनसे अच्छा ऊँचा पद तो फिर शायद ये जो प्रेम से भक्ति करते हैं उनको मिलेगा ना?
जो प्रेम से भक्ति करते हैं वो सबसे अच्छे बच्चे हैं। इसलिए तो आज क्या कहते हैं, बाबा भक्तों के पास जाता है, भक्ति का फल देने। कम से कम वो भक्ति तो कर रहे हैं, नियम से तो उठ रहे हैं। नियम से भक्ति तो कर रहे हैं, चाहे कुछ भी करें। कहते हैं ना निरअहंकारी, मैं नींच, पापी, कपटी कैसा भी हूँ पर आपका हूँ। आप मुझे सतमार्ग बताना। चाहे लालच के वश ही सहीं पर कर तो रहे हैं, अभिमान तो नहीं है। वही अच्छे । और यहाँ तो क्या करते हैं? आज तक बाप को ही नहीं पहचाना बाप की शक्तियों को ही नहीं पहचाना तो कौनसे भक्त कहेंगे, कौनसे ज्ञानी कहेंगे!! इसलिए बाप भक्तों का भी है और अज्ञानियों का भी ज्ञानियों का भी सबका है। बाप हर किसी का है ओके!!
अच्छा बच्चों अभी चले।