"मीठे बच्चे... जब आत्मा एकदम साफ बन जाती है, पुराने स्वभाव संस्कारों से मुक्ति प्राप्त करती है, तब बापके प्रेम के रंग में वो डूब जाती है। और जो रंग पहला लगता है उसपे चाहे कितने भी रंग लगाओ, कोई भी रंग नहीं चढ़ सकता क्योंकि जिसके ऊपर बापके प्रेम का रंग लग गया, उसके ऊपर किसी दूसरे के प्रेम का रंग नहीं लग सकता।"
"ॐ"... कैसे हो सभी बच्चे? अच्छे हो ना? बाबा से प्रेम है? कितना प्यार है? बहुत है! इतना या इतना? कितना है बताओ? अरे वाह! कैसे हो? पहुँच गए? कैसे आए चलकर आए या दौड़के आए? (उड़के) अच्छा आप उड़के आए! हो! अपना भी एरोप्लेन आ गया है, किस किस को बैठना है? एरोप्लेन में बैठने के लिए सारे आधार लेके आने पड़ेंगे फुल चेकिंग होगी। (बाबा ठप्पा तो आप लगाओगे ना!) ठप्पा लगाएंगे पर आपके पास सामान होगा तो। देखो बोलते हैं, कि जब कहीं यात्रा पर जाते हैं तो सारी चीजें लेकर के जाते हैं ना , बिना लिए थोड़ी जाएंगे। तो एक भी चीज की कमी पड़ी तो आपको इंतजार करना पड़ेगा, और आपको आगे जाने नहीं देते। तो बाबा ने क्या कहा - आगे जाना है तो अपना सबकुछ लेके आना पड़ेगा। लेके आएंगे? सबके पास है? आधार सबके पास है? क्या एड्रेस है बताओ सभी? (नाम आत्मा, पिता शिव परमात्मा, एड्रेस परामधाम!) ये पक्का चाहिए जो भूल गया, उसको नहीं जाने देंगे। आपका पूरा एड्रेस लिखा होना चाहिए। मैं कौन- "आत्मा" और मेरा पिता कौन- "शिवबाबा" और मेरा घर का एड्रेस क्या है - "परमधाम"! यही तीन चीजें होती है ना दुनिया के आधार में? और आधार नंबर क्या है? मैं आत्मा बिंदी... बाबा बिंदी... और ये पूरा विश्व- बिंदी! सबका सेम नंबर है। मैं आत्मा बिंदी, मेरा बाबा बिंदी, और ये पूरा ड्रामा बिंदी ठीक है। याद रहेगा ना अपना अपना नंबर ? लेकिन उसमें एक छोटा सा वो आता है... जिसका पुरुषार्थ तीव्र है उसमें छोटे अक्षरों में मार्क्स लिखे होते हैं, कितने नंबर आए? कितने नंबर से पास है? एक नंबर है या दो नंबर है या जीरो बटा जीरो है, या 100 बटा 100 है। उसके आधार पे सीट मिलती है। ये तो सभी को पता है ना।
देखो बच्चों अगर अभी आलस करेंगे, अभी अलबेलापन करेंगे, अब ये सब चीजें करेंगे तो क्या होगा? अभी श्रीमत पर नहीं चलेंगे, अब भी आज्ञाकारी नहीं बनेंगे, अभी वफादार नहीं बनेंगे, अब भी बाबा से प्रेम नहीं करेंगे, तो क्या होंगा? नंबर कट जाएंगे! तो क्या नंबर काटने हैं? नहीं काटने ना? ( बाबा आजकल तो नंबर बता देते है ताकि और मेहनत करें, तो आप भी बता दो ना नंबर।) ये यहाँ के टीचर गड़बड़ करने लग गए है, अपना जो महा टीचर बैठा है ना वो एक परसेंट भी गड़बड़ नहीं करेगा। जिस दिन रिजल्ट आएगी उसी दिन बैठकर अनाउंस करेगा- फलाने फलाने के इतने नंबर है...उसके इतने नंबर है... अनाउंस भी नहीं करेगा सबको बस छोटी सी पर्ची पकड़ाएगा- कोई फेल है या पास है। पहले क्या करते थे? लिख करके देते थे कि कितने मार्क्स से बच्चा पास हुआ। तो आजकल के टीचर तो कभी-कभी गड़बड़ कर देते हैं। पर जो सतगुरु, टीचर है ना, पढ़ाने वाला, शिक्षक है ना, वो कभी भी गड़बड़ नहीं करता। और गड़बड़ होती है, तो हमारी मेहनत की कमी के कारण, हम पुरुषार्थ नहीं करते, हम सद्गुरु की श्रीमत पे नहीं चलते, सतगुरु की मत पे नहीं चलते, तो ही गड़बड़ होती है। तो मत और श्रीमत क्या कहती है ये हमें देखना है। ठीक है बच्चों।
अच्छा खुश हो? सभी को लौकिक दुनिया की होली की शुभकामनाएं! ये लौकिक दुनिया में इधर होली मनाते हैं ना। सतयुग में होली नहीं मनाएंगे, क्योंकि वहाँ पर सब होली (holy) है, सब पवित्र है। ये होली यहाँ पर ही मनाते हैं। वहाँ तो दिवाली भी नहीं बनाते हैं। इधर दिवाली क्यों मनाते हैं बताओ? इधर दिवाली मनाते हैं कि जो राम है ना, वो अपना 14 वर्ष का वनवास काट के और रावण को मार के, अपने अयोध्या में लौटा था। इसलिए दीपावली बनाते हैं, कि राम जो है विजय को प्राप्त करके आया है... रावण को मारके आया है... 14 वर्ष का वनवास काट के आया है। ऐसे ही आप जब सतयुग में जाएंगे... रावण को मार के, वनवास काट के, तो क्या मनाई जाएगी? दिवाली मनाई जाएगी। आप सब का इंतजार हो रहा है दिवाली पे सतयुग में। तो आना है सबको? पहले ही बोल रहे हैं प्रूफ लेकर आना... पास चाहिए पास। बोलते हैं अच्छा भगवान के घर में भी पास लगता है? क्यों नहीं लगता? दुनिया में पास लगता है, ये तो है ना? अभी जैसे पुरुषार्थ करेंगे, जिस तरीके से पुरुषार्थ रहेगा उस तरीके से पास होके, पास लेना है। पास नहीं होंगे तो पास कैसे मिलेगा? पास होंगे तभी तो पास मिलेगा ना। इसलिए तो बोलते हैं दुनिया में भगवान बच्चों का इंतजार करता है, आपके लिए नहीं सबके लिए, बाबा आया है परमधाम से, इतने वर्ष हो गए इंतजार कर रहे हैं। किसका? रोज बोलता है बच्चे तैयार हो जाओ, तैयार हो जाओ। बच्चे बोलते है नहीं अभी रुको अभी और थोड़ा दुनिया के मजे लेने है, बाबा अभी रुको ना। परमधाम में तो रहना ही है, जाना ही है, रुकेंगे थोड़ी! आज नहीं तो कल निकलना ही है, थोड़ा और दुनिया का सुख ले लेते हैं। तो बाबा ने क्या कहा - चलो नहीं तो बाबा डंडा दिखाएँगा। डंडा किसी को पसंद नहीं आता ना, पर बाबा का कोई दिखने वाला डंडा नहीं है, सीधा दर्द होता है उस डंडे को लगने से। लगता हुआ दिखाई नहीं देंगा, पर तकलीफ बड़ी दिखाई देती है, कहाँ पेन है कहाँ दर्द है वो दिखाई देता है।
अच्छा तो सभी बच्चों को... आज सोचना है... मैया ने तो वैसे बड़ा अच्छा बताया है, होली माना क्या? पास्ट हो गया, जो बीत गया! होली माना पवित्र बन गए! होली माना जल के एकदम सच्चा सोना बन गए, रियल गोल्ड बन गए, उसको होली बोलते हैं। और होली माना में बाप की होली (हो गयी )और अब होली फिर क्या बोलते हैं, जब होली को जला देते हैं, तो फिर रंग लगाते हैं इसका मतलब क्या है? इसका मतलब ये है कि बापके प्रेम का रंग मुझ आत्मा पे गहरा चढ़ गया है। पहले दिन तो होली मनाई दूसरे दिन मैं बाप के रंग में डुबकी लगा रही हूँ, अच्छे से अपने आपको रंग रही हूँ। जो एकदम कोरा बन जाता है, अच्छे से साफ बन जाता है, तो उसको एकदम बढ़िया वाले रंग में डुबाया जाता है, उस पे कलर दिया जाता है। तो आत्मा एकदम साफ बन जाती है, पुराने स्वभाव संस्कारों से मुक्ति प्राप्त करती है, तो फिर बापके प्रेम के रंग में वो डूब जाती है। और जो रंग पहला लगता है उसके ऊपर चाहे कितने भी रंग लगाओ, कोई भी रंग उसपे नहीं चढ़ सकता। जिसके ऊपर प्रेम का रंग लग गया बापके प्रेम का रंग लग गया उसके ऊपर किसी दूसरे के प्रेम का रंग नहीं लग सकता।
बाबा होलिका के लिए बोलते हैं कि ब्रह्मा के द्वारा चादर मिली थी, फिर भी वह जल गई थी?
देखो बच्चे ये तो भक्ति मार्ग की कहानियाँ है, ब्रह्मा के द्वारा चादर मिला ये भक्ति मार्ग की कहानियाँ है, पर प्रह्लाद तो शिव का पुत्र था ना! इसका मतलब क्या होता है... ये जो सृष्टि रची जाती है ब्रह्मा के द्वारा इसका तो निश्चित विनाश हो ही जाता है, इस पुराने वस्त्र का अर्थात ये पुराना वस्त्र खत्म हो जाता है। आत्मा बन जाती है "प्रह्लाद" जो वो जलता ही नहीं है। देखो बोलते हैं आज दुनिया में यही तो कर रहे हैं... ब्राह्मण बच्चे ही तो कितना मिस यूज कर रहे हैं। तो इसलिए बाबा ने क्या कहा मैं आत्मा एकदम प्योर सोना बन के बाहर निकल गई ठीक है। सभी बच्चों को क्या बनना है? पिछली बार भी आए थे एक ही बात बोली थी। क्या बात थी बताओ सभी? पिछली बारी आए थे तो क्या कहा था? एक ही शब्द से संपन्न, संपूर्ण बन सकते हैं। (आज्ञाकारी बनना है ) हाँ! जो आज्ञाकारी नहीं है वो नास्तिक है, और जो नास्तिक है वो स्वर्ग में ऊँच पद नहीं पाएगा। वो त्रेता के अंत में भी छोड़ दो, वो प्रजा में किसी कोने में आएँगा। तो क्या बनना है? आवाज से बोलो - आज्ञाकारी बच्चा बनना है। आज्ञाकारी बन गए तो सबकुछ आ जाएगा - वफादारी आएगी। और मुख से आज्ञाकारी नहीं बोला था बाबा ने.... यहाँ मन से, दिल से, आज्ञाकारी बनना है। अभी भी कमी है आज्ञाकारी बनने में। अभी कोई आज्ञाकारी बने नहीं है। कहाँ ना कहाँ परसेंटेज में है, कोई 10 परसेंट है, 20 परसेंट है, कोई 50 परसेंट है। बाबा ने क्या कहा 80 परसेंट तो पहुँचे ही नहीं है। 80 परसेंट मुख से पहुँचे गए हैं, तो दिल से नहीं पहुँचे हैं, तो क्या बनाना है? दिल से मुख से आज्ञाकारी दोनों एक जैसा होना चाहिए। डबल चेहरा नहीं आना चाहिए। बाबा को डबल चेहरा पसंद नहीं है अंदर बाहर एक चाहिए। अंदर कुछ और है, बाहर कुछ और है, ऐसा नहीं चाहिए। दिल में भी बाप हो मुख में भी बाप हो।अंदर में भी दिल से निकले आज्ञाकारी और मुख से भी निकले आज्ञाकारी, ये होता है अंदर बाहर एक होना। ऐसा नहीं है बाबा ने बोला है ना... आज्ञाकारी बन जाते हैं... बाबा की बात मान लेते हैं... बोला हैना बाबा ने...कर लेते हैं, क्या जाएगा? ऐसा नहीं, डबल रूप नहीं चाहिए... क्योंकि सतयुग में क्या होगा? आज्ञाकारी बच्चे होंगे ठीक है।
अच्छा बच्चों आप सभी खुश रहो, हँसते रहो, मुस्कुराते रहो, और बाप के सदा बने रहो, पर श्रीमत प्रमाण चलते रहो। तिलक लेकर आओ आज होली है ना।
बाबा जैसे प्रेम का रंग हरा होता है तो ऐसे जो गुण है उनके रंग दिए हुए हैं?
देखो बच्चे अपन ने पहले भी बताया था कि रंग किसको बोलते हैं। प्रेम का रंग हरा ये किसने बनाया है? आप सबने बनाया है। बोलते हैं ना जब आत्मा प्रेम के रंग में डूबती है तो अलग-अलग अनुभूतियाँ होती है, अलग-अलग वाइब्रेशन, अलग-अलग तरंगे आती है, जो उनके रंग आपको दिखाई देने लगते हैं। कई बोलते हैं सात लोक होते हैं 7 लोकों का रंग ये ये है, ऐसा नहीं होता है। ये आत्मा का ही अपना रूप बनता है। आत्मा में ही ये सारे प्रेम के रंग... जैसे देवियों को दिखाते हैं ना, इतनी देवियाँ है.. इतनी देवियों के वस्त्र अलग-अलग है। दिखाते हैं ना? शक्तियों के अलग-अलग वस्त्र दिखाए जाते हैं, ऐसे दिखाते हैं ना। तो ये सब क्या है? ये यहाँ का आपके मन में जो आप बाबा के प्रति, बाबा से प्रेम ले रहे हो ना, वो प्रेम है। आपको हर चीज का अनुभव बाबा कराएँगा। आपको रंग देखना है, प्रेम का रंग ये है, तो आप उसे सोचो आप उसी प्रेम में झूम रहे हो... शांति के, सुख के, प्रेम के आनंद में। फिर हमने उसको रंगों का नाम दे दिया। प्रेम का तो कोई रंग ही नहीं होता। प्रेम का कोई रंग होता है क्या? प्रेम का कोई रंग नहीं है,और जो रंग जाए वो प्रेम नहीं है। जो नाम ही रंग पड़ जाए, रंग नाम है, पर प्रेम का कोई रंग नहीं है, कोई रूप नहीं है, बस प्रेम है। क्या होता है ना,जो परमात्मा से प्रेम होता है, वो इन सब रंगों से, इन सब रूपों से परे हो जाता है। परमात्मा से प्रेम करने वाला मतलब परे, ये सब चीजों से परे बेहद में चला जाता है बेहद में उड़ता है ठीक है। तो ये तो दुनिया में बनाया है कि प्रेम का रंग ये होता है, शांति का रंग ऐसा होता है, सुख का रंग ऐसा होता है, ये सब रंग इधर ही बनाये हैं।
कहते हैं जब 6 गुण पूरे हो जाते है हमारे तब हम आनंद के रंग में घूमते हैं, माना आनंद ही आनंद है...!
आनंद के रंग में घूमते हैं ना, पर आनंद का रंग कौनसा है? ये नाम किसने दिया? इंसानों ने दे दिया ना! आनंद का रंग हो सकता है पर उसका वो नहीं हो सकता कि भई हाँ, फलाना रंग है, ऐसा रंग है, ये नहीं होता। ये एक कहने की मुख की भाषा होती है ठीक है।
कहीं पर भी रहो आप बच्चे... जो यहाँ वाले यहाँ पर भी, बहुत अच्छा एक घंटा, दो घंटा बड़े प्यार से बाप की याद में बैठना है कल सभी को। झुटके मार के नहीं एकदम अटेंशन से अलर्ट से ठीक है।
सभी बच्चे ठीक है सदा खुश रहना है, खुश रहेंगे तो उदासी नहीं आएंगी ठीक है। ओके। अच्छा बच्चों फिर मिलेंगे... "ॐ"...
सतयुग आ गया है ठीक है। क्या आ गया है? ये रहस्य बिल्कुल नहीं बताएंगे पर हर बार आएंगे तो कहेंगे कि सतयुग आ गया है ठीक है। इसका मतलब समझो नहीं, बस ये सुनते जाओ कि सतयुग शुरू हो गया है। सतयुग शुरू हो गया है बस, ये कान में सुनते जाओ अभी आप। (कबसे हुआ?) जबसे बाप ने बोला तब से सतयुग शुरू हो गया है। ये सोचो कल से सतयुग शुरू हो गया कल परसों से सतयुग शुरू हो गया है ठीक है। इसलिए क्या करो कल बैठकर के 2 घंटे योग करो और अनुभव करो मैं सतयुग में ऐसे कदम रखके जा रहा हूँ, मैं सतयुग की सीढ़ी चढ़ गया हूँ, मेरी मैया सबको हाथ पकड़के बुला रही है - आओ बच्चे सतयुग में आओ... आओ बच्चे सतयुग में आओ।
(कृष्ण रूप में बाबा खेल पाल कर रहें हैं, ऐसी कल्पना किसी आत्मा ने बाबा संग साँझा की। )
अच्छी कल्पना है ऐसी कल्पना करते जाओ, सतयुग में फिर आप खेलना भी शुरू कर देंगे। (बुलाओगे ना फिर मेरे को?) क्यों नहीं आप जाएंगे ना। (बाबा हम छोटे-छोटे में आएंगे या आप बड़े हो जाओगे तब आएंगे?) थोड़े से तो बड़े होने दो ना। (खेलेंगे कैसे फिर आपके साथ?) तो थोड़े से बड़े हो जाएंगे तभी तो छोटों के साथ खेलेंगे ना। आप किधर लुढ़क गए तो संभाल के तो उठाके तो लेके आएंगे आपको।
अच्छा बच्चों "ॐ"... फिर मिलेंगे...