"मीठे बच्चे... सारी इच्छाओं को त्याग दो, जिन्होंने इच्छाओं को अभी तक नहीं त्यागा है, वह अभी भी बाबा से मिले नहीं है, याद रखना। आप भले मिलन कर रहे हो, बाबा आ रहे हैं, मिल रहे हैं, पर आपका मिलन नहीं हुआ है।"
अच्छा "ॐ"...बहुत अच्छा! दिल लग रही है ना? दिल लग रही है? किसके साथ लग रही है? (बाबा के साथ) नहीं लगती बाबा के साथ। व्यक्ति वस्तुओं में लगती है, बाप के साथ नहीं लगती। बाप के साथ दिल लगने वाले बच्चे तो सदा खुशी में नाचते रहते हैं। उनकी जीवन तो आनंद में रहती है। क्योंकि उनकी जीवन में तो प्रेम ही प्रेम होता है। वह सिर्फ बाबा से ही बातें करेंगे, वह सिर्फ बाबा की ही बातें करेंगे। इसलिए यह जो बोलते हैं ना, बाबा हाँ हमारी दिल बाबा से लगी है। दिल बाबा से नहीं लगती, दिल कहीं कहीं लगती है, किसी और तरफ लगती है। दिलवाले दिल से याद करते रहेंगे। क्योंकि जिसको याद करते हैं, उसके गुण आते हैं। समझ में आ रहा है? जिससे प्यार होता है, जो हमारा रोल मॉडल होता है, जिसको हम फॉलो करते हैं, उसके जैसा बनने की कोशिश करते हैं। आज लौकिक दुनिया में जो हीरो हीरोइन होते हैं, अगर उनके कोई एकदम डीपली फेन होंगे तो क्या करते होंगे वह? उनके जैसी एक्टिविटीज, चाल चलन, सोचेंगे उनके जैसा बनना। कितनी कॉपी करते हैं। करते हैं कि नहीं करते हैं? वह तो शरीरधारी है, पर हमारा बाबा विदेही प्यार का सागर है, और वह अपना स्वरूप भी दिखाता है कि जब वह आता है तो कितना निर्माण और कितना प्रेम उसके अंदर होता है आप बच्चों के प्रति। तो क्या करना चाहिए? अगर दिल बाबा से लगी हुई होगी तो वैसा बनने का प्रयास करेंगे।पर वैसा नहीं बनते है। वैसा बनने की कोशिश भी करते नहीं हैं। कहाँ बनते हैं बताओ, ऐसा कहाँ बनते हैं? बाबा तो प्यार का सागर है, आप सभी अपने भीतर जाकर देखो कि कितना प्रेम के स्वरूप हो आप? बाबा तो शांति का सागर है! आप अपने अंदर जाकर के देखो, उतरो अपने भीतर और चेकिंग करो कि अंदर में कितनी शांति है? देखो? बाबा सुख का सागर है! है? तो आप सभी अपने अंदर को चेक करो कि हम कितने सुखदाई हैं? हमारी चाल चलन, हमारी एक्टिविटीज, हमारे बोलचाल से, हमारे व्यवहार से, सुख मिलता है क्या? बाबा तो आनंद का सागर है! हम कितने आनंद के स्वरूप बने हैं? आप चेक करो। तो यह होता है। हमारे मन में जिसकी छवि है, जिससे हम प्रेम करते हैं, उसके जैसा बनना। तो दिल बाप से नहीं लगी है, दिल कहीं ओर लगी है। दिल व्यक्ति, वास्तु,वैभव में लगी है, इसलिए बाप जैसा बन नहीं पाते। समझ में आया ना सबको? बाबा जैसा बनना, बाबा तो गुणों का सागर है! कभी अपने गुणों की लिस्ट निकालो। एक बार चेक करो कि मुझ में कितने गुण हैं? निकाल कर चेक करने चाहिए। तो दिल लगी है...? लगी है.... हम यह नहीं कहेंगे बिल्कुल नहीं लगी... परसेंटेज में लगी है। पर बाबा के जैसे बनने का प्रयास नहीं करते। हाँ हम हैं, बस आए हैं, समर्पित हैं, ऐसा नहीं होना चाहिए। जिसके लिए आए हैं,उसकी याद में तो मग्न होना चाहिए ना। जिसके लिए ये जीवन छोड़ा, यह दुनिया छोड़ी, यह चकाचौंध छोड़ी, उसी से ही प्रेम की कमी आ जाए? उसी से ही प्रेम कम हो जाए? तो क्या मतलब फिर उस जीवन को छोड़ने का? देखो उससे कितना प्यार है, कभी बात करो, कभी चेक करो। अपने आप को चेक ही नहीं करते तो चेंज कहाँ से करेंगे? समझ में आ रहा है? चेकिंग ही चेंज करने का आधार है। आप बैठ चेकिंग ही नहीं करोगे, अपने आप को आपे ही मियाँ मिट्ठू बने फिरोगे- मैं बहुत अच्छा हूँ, मैं बहुत.. यह क्या है? मियाँ मिट्ठू का मतलब क्या है? आपे ही खुद की तारीफ करना। आपे ही अपने आप को मैं ऐसा हूँ, या मैं ऐसी हूँ, या मैं महान हूँ, या मैं यह हूँ, मैं वह हूँ। नहीं ना। मैं जो हूँ, जैसी हूँ मेरे बाबा ने बनाया है। मुझे बाबा ने बनाया है। मैं क्या हूँ?कैसी हूँ? जितने भी गुण है मेरे बाबा की वजह से है। आप चेक तो करो कि हम पहले कैसे थे, और आज कैसे है? पहले और आज में हमारे में कितना परिवर्तन आया है? किसकी वजह से आया है? बाबा की वजह से आया है ना। कोई भी गुण आए हैं तो किसकी वजह से आए हैं? बाबा हमारा रोल मॉडल है ना। तो यह मैं, मैं के गीत गाना हम बंद करें, बाबा, बाबा के गीत गए तो उद्धार होगा, और कल्याण होगा, और आपसे भी अनेक आत्माओं का कल्याण होगा। क्योंकि मैं, मैं कौन करता है बताओ? बकरी करती है, बकरा करता है। और? जो देह अभिमान में पूरे होते हैं। बाबा को बीच में क्यों नहीं लेकर आते? बाबा कहाँ चला जाता है जब हम कहते हैं, "मैं"। बाबा कहाँ चला जाता है? कहाँ भूल जाते हो बाबा को? अरे हम आत्माएं उसी के बच्चे हैं।
सर्व समर्पण का मतलब क्या है? सर्व समर्पण का मतलब यह नहीं है आपने घर छोड़ा, परिवार छोड़ा, यह छोड़ा, वह छोड़ा- उसको सर्व समर्पण नहीं कहते हैं। वह तो एक बाहरी चीज है। समर्पण का अर्थ है कि ये जो मैं-मैं,मैं-मैं करते हैं ना, इसको भी समर्पण करना। नहीं हूँ मैं कुछ उसके बिना। क्या है मेरा अस्तित्व उसके बिना? मुझे बनाने वाला वो है। भले कोई कितनी भी महान आत्मा हो, अधीन तो प्रकृति की ही है ना। परमात्मा भी..... सोचो परम पिता परमात्मा भी हम बच्चों से मिलने के लिए किसका आधार लेता है? प्रकृति का आधार लेता है। बनाया उसने है। और वह भी क्यों लेगा आधार, कारण क्या है? क्योंकि उन्होंने आपको ऐसा बनाया, तो आपसे कांटेक्ट करने के लिए, क्योंकि बच्चे रास्ता भूल गए हैं तो रास्ता दिखाने के लिए बाप प्रकृति का आधार लेकर के आता है। इसीलिए बोलते हैं- परमात्मा और प्रकृति दोनों मात पिता है। तो इसलिए हम कौन है? उनके बच्चे है! तो हमें अपने पिता का और प्रकृति का अंतरात्मा से कितना धन्यवाद करना चाहिए। अपने परमपिता को कितना धन्यवाद करना चाहिए कि मैं आत्मा परमपिता परमात्मा का बच्चा हूँ। यह शरीर मेरा एक वस्त्र है, घर है। ना बिना आत्मा तन काम का, ना बिना तन के आत्मा काम की। जब तक दोनों जुड़ेंगे नहीं, तब तक बाबा को भी याद नहीं कर पाएंगे। तो इसलिए अगर हम "मैं" करते है.... अगर आप सदैव रह सकते हो तो "मैं" करो। लेकिन ये शरीर तो मिटने वाला है ना। कभी आत्मा का स्वमान स्वरूप में याद करो कि "मैं आत्मा"! उस स्थिति में टिक करके याद करो, तो देह अभिमान नहीं आएगा। एक मैं का स्वमान होता है, "मैं आत्मा"! एक मैं पन होता है देह अभिमान।
आप सभी बोलते हैं हम इतना समझदार है, या हम इतने क्वालिफाइड है, या इतना डिग्री वाले हैं। आप हमें यह बताओ कि यह आप परमानेंटली हो? हो तो बताओ, परमानेंटली हो? यह शरीर के साथ मिट जाएगी, आपकी डिग्री किसी काम नहीं आएगी। भले आप आत्मा अजर, अमर, अविनाशी हो, पर जैसे ही अगला जन्म लोगे, तो क्या होगा? क्या यह डिग्री आएगी? चलो मैंने पिछले जन्म में डॉक्टरी की है तो क्या मैं इस जन्म में भी काम ले लूँगा? नहीं ना। या मैंने कुछ सीखा है, या मेरे अंदर.... नहीं आएगी, वह डिग्री आपके किसी काम नहीं आएगी। जो शरीर आपने लिया है उस अनुसार ही वह काम में आएगा। तो जो आपका है ही नहीं, तो उसके ऊपर अभिमान किस चीज का? किस चीज का? सोचो। इसलिए बाबा का बनना माना अपने आपको चकनाचूर करना। बाबा का बनना मानो देह अभिमान का अंश मात्र भी खत्म करना। बाबा का बनना मानो अपने आप को मैट बना देना पूरा चिपक जाना। कहीं हम देह अभिमान के चक्कर में अपने भाग्य को तो खराब नहीं कर रहे। चेक करो, क्योंकि उससे याद नहीं बढ़ेगी, उससे क्या होगा? वह किसी काम का नहीं। तो बैठ करके कितने घंटे आप बाबा को धन्यवाद कहते हो? प्रकृति को धन्यवाद कहते हो? बताओ कितने घंटे बैठकर बात करते हो? बाबा आज मैं जो हूँ, जैसा हूँ आपकी वजह से हूँ। यह तन मुझे प्रकृति माँ की गोद से मिला है, मैं दोनों का दिल से आभार प्रकट करता हूँ, मैं धन्यवाद करता हूँ। यह शरीर तो विनाशी है, पर मैं आत्मा तो अविनाशी हूँ और मैं अविनाशी पिता की संतान हूँ।इस प्रकृति के आधार से ही मैं आपसे कनेक्शन में हूँ। अगर प्रकृति नहीं होती तो याद की तड़प, प्रेम की लगन क्या होती है वह मुझे कैसे पता चलता? क्योंकि परमधाम में तो सब आत्माएं मानो जड़ मिसल है। तो फीलिंग कहाँ से आएगी? फीलिंग के सारे सॉफ्टवेयर तो शरीर के साथ मिलते हैं ना। समझ में आ रहा है? एक आपके पास साइंस का साधन है, कंप्यूटर है, और एक मेमोरी कार्ड है, वह मेमोरी कार्ड जड़ है। बिना कंप्यूटर के जाए उसके अंदर से डाटा नहीं निकाल सकते। तभी उसके अंदर आप डेटा निकाल सकते हो कि उस मेमोरी कार्ड के अंदर कितना डेटा है, जब तक वह कनेक्ट नहीं होगा कंप्यूटर से। समझ में आ रहा है? तो यह कनेक्शन जुड़े हुए हैं। अपने को आत्मा समझना, बाबा को याद करना, प्रकृति का धन्यवाद देना। बच्चे सुनते हैं प्रकृति को दासी बनाए। अरे अपनी माँ को कोई दासी बनाता है क्या? कौनसी प्रकृति को बोला दासी बनाये और कौनसी प्रकृति को दासी बनाने चले हैं? अब पाँच तत्वों को कोई दासी बना सकते हो? एक फूँक मारेगी तो आप गायब हो जाओगे। एक हवा का झोंका थोड़ा जोर से आया तो कहाँ लेके उड़ाएगी पता ही नहीं चलेगा। आप प्रकृति को दासी बनाने चले! इसको बनाओ, यह जो शरीर भागता है ना इधर उधर, ये जो मन करता है, यह जो मन चलाएमान हो करके, यह सारे हाथों से कर्म कराता है, अपने मन को कंट्रोल करो। प्रकृति आपे ही, यह शरीर आपे ही आपका दास बन जाएगा। इसको दास बनाओ। इसको बनाओ इसको कंट्रोल में लो। की इन आँखों से कुछ व्यर्थ नहीं देखना, वाणी से कुछ व्यर्थ नहीं बोलना। हाथों से कोई गलत कर्म नहीं करना। पाँव हमारे सदा बाप के पास ही आवे। मन में कोई लालच लोभ यह सब चीजे ना होवे।क्योंकि जैसे ही मन में आती है तो हाथों से कर्म होते है ना। तो सोचो किसको दास बनाना है? कहीं सोचो मैं हवा, पानी, आकाश, धरती को दास बनाऊँ। उसको दास नहीं बना सकते। बना सकते हो क्या? जाओ समंदर के पास बोलो आप मेरे दास हो। एक लहर में उड़ाके ले जाएगा आपको। फिर देखो कौन किसका दास है? ऐसा है? ऐसा ही है। दास किसको बनाना है? ये शरीर होना चाहिए। पर ज्ञान को उल्टा समझकर बच्चे क्या हो गए? तो इसलिए बाप से दिल लगी होना का मतलब होता है कि दिल में एक दिलाराम रहे, दिल एक के साथ लगी रहे। और जब एक के साथ लगी रहेगी तो खुशी का पारा चढ़ा रहेगा। समझ में आ रहा है?
अच्छा चलो बच्चों, आप सदा खुश रहो, और बाप की याद में मग्न रहो, बाप के सदा गले लगे रहो। वतन में जाए, बैठ सोचो- बाबा मुझ आत्मा से सारी कमी कमजोरी नष्ट कर रहे हैं, उनकी पावरफुल ऊर्जा से मैं आत्मा स्नान करके कंचन बन गई हूँ। ऐसे कई बार दुनिया में भी देखते हो ना, बच्चा अगर खेलने गया है तो माँ उसको घड़ी-घड़ी बुलाती है- चलो, चलो घर चलो। और बच्चा ऐसे करता है- नहीं आऊँगा... मैं नहीं आऊँगा, ऐसे जिद्द करता है ना। तो क्या करती है माँ बाद में? कान पड़कर ऐसे घूमा करके लेके जाती है- चलो घर पर!! तो यहाँ पर भी क्या हो गए? खेल में फँस गए, और प्रकृति माँ क्या करेगी? कान पकड़ेगी जोर से। कैसे कान पकड़ेगी? जोर से भूकंप आ गया, बाढ़ आ गई, यह सब कान पकड़ना ही है। देखा कोरोना आया तो सब भगवान को याद करने लगे, मंदिरों में घंटी बजाने लगे, दिए लगाने लगे। तो क्या हुआ? प्रकृति ने क्या किया? कान पकड़ा मतलब कान पड़कर घर की याद दिलाई ना सबको? सबको घर की याद दिलाई ।ऐसे ही प्रकृति एक जोर का झटका देगी भूकंप का, तो सबको घर याद आ जाएगा। अरे भगवान को याद करो वही सब ठीक करेगा। वैसे कोई याद नहीं करता। कमाल की बात है यह दुनिया का कैसा सिद्धांत बन गया है कि जब दुख के पहाड़ गिरते हैं तभी घर की याद आती है, और तभी पिता की याद आती है। बाकी बच्चा मस्ती में है, कुछ भी है, उसको कुछ भी याद नहीं रहेगा। कोई मतलब नहीं उसको। पर जैसा दुखी हुआ तो क्या हुआ? घर याद आएगा, माँ -बाप याद आएंगे। तो प्रकृति भी अभी कान के नीचे लगाने वाली है अच्छे-अच्छे से, इसलिए पहले से ही घर का रास्ता याद रखो, ताकि लास्ट समय में शॉक ना हो जाओ- अरे यह होने वाला था! यह हो गया! यह जो युद्ध की तैयारियाँ चल रही है ना, अंदर अंदर, जो सारी भूमि खोखली हो गई है, जो चारों तरफ एक सेकंड में, एक नोक पर दुनिया खड़ी है। कभी भी कहीं से भी आवाज आ सकती है। तो उसके लिए भी अपने माइंड को तैयार.... उसके बाद... हम तो चलो बाबा के पास चलेंगे, चलो बाबा के पास चलेंगे। उसके बाद याद आएगा, अभी किसी की बुद्धि में नहीं आएगा। क्योंकि सोचेंगे- बाबा के पास जाएंगे तो बाबा दुखों को दूर करेंगे। नहीं। वर्तमान समय ही बाबा सबको आवाज दे रहा है- बच्चे अपने आप को परिवर्तन करो, आप जहाँ पर भी है, जैसे भी बैठकर वहीं बाप को याद करो। घड़ी-घड़ी बाप की याद में रहो, एक दूसरे को याद दिलाओ, अनेकों का कल्याण करो। आप चाहे दुनिया के किसी कोने में हो, बाबा आपके लिए स्पेशल नाँव लेकर आएगा। यह बाप का वायदा है। यह मत सोचना बाबा मैं तो दूर हूँ, तो मैं समय पर कैसे पहुँच पाऊँगी? तो बाबा गारंटी करता है- अपने आज्ञाकारी, सपूत, वफादार, फर्माबरदार बच्चों को लिए बाबा खुद नाँव लेकर के आएगा। इसलिए कभी नहीं सोचना कि मैं बाबा से दूर हूँ। और भले कोई यहाँ रहकर के भी आज्ञाकारी, सपूत, वफादार , फर्माबरदार नहीं है, तो भी वो नाँव में नहीं चढ़ेंगे। याद रखें इस बात को। चाहे कितने करीब होकर अगर बापके आज्ञाकारी, वफादार बच्चे नहीं है, वह नाँव में नहीं चढ़ेंगे। जो दूर बैठे हैं, चाहे हजारों मील दूर क्यों ना बैठे हो, बाबा ऐसे बच्चों के लिए खुद नाँव लेकर के आएगा। तो इसलिए घड़ी-घड़ी कहते हैं आप यहाँ हो, आपके पास डबल चांस है, आपको डबल लिफ्ट मिली है। आप बच्चों को तो कितना तेज़ी से दौड़ना चाहिए, कितना तेज़ी से पुरुषार्थ करना चाहिए। आज समय है, कल नहीं होगा। और अभी भी कोई अपना टाइम वेस्ट करते हैं इधर-उधर, तो लास्ट टाइम में फिर वह भले कितना भी बाबा, बाबा, करें कोई मतलब नहीं रहेगा। आप अगर यहाँ पर आए हैं, यहाँ आकर के भी अपने आप में परिवर्तन नहीं हुआ, तो क्या फायदा। यह परिवर्तन का पर्वत है, इसमें परिवर्तन करना ही है। अगर बाप के साथ अंतिम घड़ी की नाँव में बैठना है तो। पर कई बच्चों को तो यह लगता है कि मैं बहुत तीव्र पुरुषर्थी हूँ, मुझे परिवर्तन करने की जरूरत नहीं है, सामने वाले को परिवर्तन करने की जरूरत है। तो हम उनके लिए कहते हैं की सबसे ज्यादा आपको परिवर्तन करने की जरूरत है, जो यह सोचते हैं कि मुझे परिवर्तन नहीं करना। जो ये सोचते हैं कि मैं एकदम करेक्टर हूँ। जो सोचते हैं कि मैं संपूर्ण बन गया हूँ। आपको हम कहते हैं कि आपको बहुत ज्यादा परिवर्तन करने की जरूरत है। अरे क्या परिवर्तन करना है? दिल देखो, बाबा का दिल कितना बड़ा है!! और उसके दिल में रहने वाले हम क्या छोटे-छोटे नमूने रहेंगे? हमारी भी दिल कैसी होनी चाहिए? क्या चूहे मुआफ़िक होनी चाहिए? नहीं, विशाल दिल होनी चाहिए। क्या ऐसी दिल है? ऐसी दिल है सोचके देखो। हम कुछ नहीं कहूँगा हर एक बच्चा अपनी-अपनी चेकिंग करो। समझ में आ रहा है? हर कोई अपनी -अपनी चेकिंग करो। जिस दिल को भगवान ने चुना हो, वो दिल सिकुड़ी हुई हो, ऐसा। तो क्या मतलब है? सिकुड़ी हुई दिल कैसी रहती है? और बड़ी दिल कैसी रहती है? ठीक है?
इस स्थान पर यह पर्वत है, यह वही गोवर्धन पर्वत है, जो भक्ति मार्ग में गायन है। आपने देखा ना, भक्ति मार्ग में क्या दिखाते थे? कि गोवर्धन पर्वत को उठाया, और सब गाँव वाले उस पर्वत के नीचे आए। कोई लाठी लगाया, किसीने हाथ लगाया, किसीने.... और सोचते हैं कि हमारी वजह से यह चल रहा है, यह पर्वत उठा हुआ है। नहीं...! इस पर्वत को उठाने वाला कौन है? "एक" है!! एक शिव बाबा है!! इस पर्वत को उठाने वाला! और हम सभी उसके सहयोगी हैं। उसको पर्वत उठाने की जरूरत क्या पड़ गई? किसके लिए? क्या उसको धूप लग गई थी? आप बच्चों के लिए, ताकि आप छाँव में आ जाओ, ताकि आप विनाश की आंधी से बच जाओ, ताकि आप बहते हुई इस तूफान से बच जाओ, इसलिए उन्होंने पर्वत उठाया। भगवान को क्या जरूरत पड़ी है पर्वत उठाने की? उसको क्या बदलना है अपने आप में? किसके लिए उसने पर्वत उठाया? आप बच्चों के लिए पर्वत उठाया। और हम अगर ऐसे ही करेंगे तो कैसे चलेगा? आपकी... बोलते हैं ना किसी ने उंगली लगायी , किसी ने हाथ लगाया, किसीने लाठी दी। मतलब यह किया कि इस महान कर्तव्य में, इस बदलाव के चक्कर में, बच्चों ने मिलकर के सहयोग किया। सहयोग अर्थात अपने आप को बदला। और जो पर्वत के नीचे से छोड़कर के भाग गए, वह ऐसी बहती हुई नदी में जाकर के कहीं डूब गए। अगर आप पर्वत में छाँव में नहीं रहोगे, तो एक दिन धूप जलाकर राख कर देगी। विकारों कि धूप। इसलिए यह पर्वत है, और ऐसा नहीं सोचना है, यहाँ रहने वाले ही पर्वत के नीचे हैं। नहीं...! चाहे वो विदेश में भी क्यों ना बैठा हो, अगर वह पूर्णतः बाप के प्रति समर्पित है, आज्ञाकारी, वफादार है, बाप का सिकीलधा बच्चा है, तो वह पर्वत के नीचे ही है। यह पर्वत कोई इतना सा नहीं है। यह कोई छोटा पर्वत नहीं है। यह पर्वत एक ऊर्जा बन चुका है पूरी सृष्टि में, जो कि बाप ने उठाया है। और जो श्रीमत पर चलते हैं, मानो चाहे वह भारत के, या दुनिया के, किसी भी कोने में बैठे हो, वह पर्वत के नीचे ही बापदादा के सहयोगी है। चाहे वह ज्ञान मार्ग में हो, और चाहे वह भक्ति मार्ग में हो। ऐसा नहीं है कि भक्ति मार्ग वाले अच्छे बच्चे नहीं.... अरे... वह तो ज्ञान वालों से भी ऊँची भावना वाले हैं।
अभी एक बात बताओ? यहाँ पर बाबा से मिलने बच्चे आते हैं। आए, बाबा से मिले। अगर किसी के मन में संशय आया - अरे यहाँ मंदिर में आरती होती है! भक्ति मार्ग शुरू हो गया! तो आप कहाँ से बाबा के बच्चे? संशय का बीज उठा ना। आपने यह क्यों नहीं सोचा कि यह ड्रामा की शूटिंग है, और ड्रामा कल्याणकारी है। जो हो रहा है ड्रामा के हिसाब से, शूटिंग के हिसाब से हो रहा है। पर ये - अच्छा! अब तो भक्ति मार्ग शुरू कर लिया! यह कर लिया!! मतलब अगर हर चीज में... छोटी-छोटी चीज में अगर हम संशय बुद्धि बन रहे हैं.... अच्छा यहाँ पर भी ऐसे बच्चे रहते हैं! यहाँ पर भी माना कहाँ पर भी? तो आप किस पे संशय उठा रहे हो? जो ऐसे संशय उठाते हैं ना, अच्छा यहाँ पर भी? तो आप रह कर देखो यहाँ पर भी। तो कल को कोई आपको भी बोलेगा कि, अच्छा यहाँ पर भी ऐसे बच्चे रहते हैं? यह भी संशय का बीज है। यह जो थोड़ी सी भी टिक टिक में संशय आ जावे, कुछ भी चीज में संशय आ जावे.... अच्छा बाबा के रथ ने आज कलरफुल साड़ी पहनी है! संशय आ गया। अच्छा लाल बिंदी लगा ली! संशय आ गया। यह कहाँ का निश्चय है, जो घड़ी घड़ी आपका ऐसे डांवा डोल नाँव होती रहती है, इधर-उधर लुढ़कते रहते हो। इसको कोई निश्चित बुद्धि थोड़ी कहेंगे? ये निश्चय बुद्धि की निशानी नहीं है। तो मानो आप पूरे खुद भी देह अभिमान में हो और आप सामने वाले को भी उसी स्वरूप से देख रहे हो। तो बदलना सामने आपके देखने वाली चीजों को नहीं बदलना है आपको, कि वह बदल जाए, वह तो बदल जाए, नहीं... आपको अपने अंतर में बदलाव करने की बहुत जरूरत है। आपको अपने भीतर बदलाव करने की जरूरत है। इस दृष्टि से आप कितने भी अच्छे के अंदर से भी बुरे से बुरे इंसान को ढूँढ सकते हो। और इसी दृष्टि में वह पावर है, कि बुरे से बुरे इंसान को भी आप उसके भीतर अच्छा ढूँढ सकते हो।
इसलिए तो भक्ति मार्ग में क्या गाया है? मीरा क्या कहती थी? जिधर देखूँ तू ही तू। क्यों कहा उसने? क्योंकि उनकी आँखों में बस गया था। जिधर देखूँ तू ही तू का मतलब क्या है? ऐसा नहीं था कि हर जगह गिरधर गोपाल दिख रहा है। नहीं... उनकी आँखों में वही चश्मा चढ़ गया,जो वह देखती रही, जिधर देखूँ तू ही तू। अब ऐसे ही... अगर कोई देह अभिमान में आए या कुछ भी करे, तो उसको भी हर जगह बुराई ही नजर आएगी। तो अपनी आँखों पर आप चश्मा कौन सा लगाए हो? कमियों को देखने का, बुराइयों को देखने का? अगर यह चश्मा लगाए हो तो क्या करो?उसको उतार के एक निश्चय का चश्मा लगाओ। ड्रामा कल्याणकारी है। ड्रामा का रचयिता कौन है? (स्वयं बाबा) हाँ, बस वह देखना है। जो बीत गया वह ड्रामा। मानो वहाँ एक काम बिगड़ रहा है। आपके पहुँचते पहुँचते वह बिगड़ गया, ठीक है। आप वहाँ गए, वह हो गया, आप अब क्या करोगे? आप चिल्लाओगे? गुस्सा करोगे? या क्या करोगे अब? अब आपके पास ऑप्शन क्या है? वह बिगड़ चुका है, अभी आपको क्या करना है? सबसे पहले ड्रामा और उसके बाद उसका समाधान देना है, कि अब इसको कैसे ठीक किया जाए। दिमाग उसमें नहीं लगाना है कैसे बिगड़ा? क्यों बिगाड़ा? किसने बिगाड़ा? आप एनर्जी क्यों लगा रहे हो उसमें? उसमें एनर्जी वेस्ट नहीं करना है। किसमें लगानी है अभी? अब इसको ठीक कैसे करें? तो आपकी एनर्जी भी सेफ होगी, और सामने वाले को शिक्षा भी मिलेगी, और आप महान भी बनेंगे। क्योंकि आपने अपनी एनर्जी को ठीक करने में लगाया। तो सामने वाला सीख गया ना, कि इसको ठीक कैसे करते हैं। तो अपने आप को देखना है, कि बिगड़े हुए काम पर चिल्लाने से कुछ नहीं होगा, अब आपकी खुद की एनर्जी को उसको ठीक करने में लगा देना है। कि आप कितना उसको... कितने जल्दी से उसको ठीक कर सकते हैं। इसलिए अगर दिल में बाप होगा ना, तो बड़े से बड़े बिगड़े हुए काम भी क्या हो जाएंगे? ठीक हो जाएंगे। और अगर ठीक नहीं हुए तो सोचो ड्रामा! यह करेक्ट ही है। यह मत सोचो कि आपकी दृष्टि से ही बिगड़ा हुआ है, लेकिन अगर वह ठीक नहीं हो रहा है तो वो ड्रामा है। कोई बात नहीं आगे चलकर ठीक होगा। ठीक है। और हमें किसी को भी उल्टा पुल्टा ज्ञान सुनाए एक दो की बुद्धि को खराब नहीं करना है। कमाल की बात है, एक बच्चा कुछ भी उल्टी-पुल्टी बातें सुनाए 10 बच्चों की बुद्धि खराब कर सकता हैं। और बाबा घंटों घंटों बैठकर इतना सुनाकर जाते हैं तो बुद्धि सुधरती नहीं है। मतलब तो बाबा से ज्यादा ताकत तो किस में है? एक उस बच्चे में, जो वाणी का तीर मारा और 20 लोग घायल हो गए। और बाबा इतने ज्ञान के तीर मारता है, उस पर कोई घायल नहीं होता। कहाँ घायल होना है? उससे तो ऐसे बचेंगे, कहीं कोई तीर ना लग जाए बस। बाबा जो तीर मार रहे हैं उससे बचते रहेंगे, पर कोई मनुष्य आत्मा आ करके कोई व्यर्थ का तीर चलाए, तो एक दूसरे को घायल कर देंगे। ज्ञान को सीधा सुनाओ। हर चीज में यह सोचो जो होगा ड्रामा कल्याणकारी है। बाबा आप हो ना मुझे क्या चिंता करनी है? अब समझ में आ रहा है? मानो बिल्डिंग बनाने वाले को पता है ना, कि कितना सरिया डालना है? या कितना सीमेंट डालना है? या कितनी बजरी डालनी है? उसको पता है ना? कोई आकर के बाहर से कहे - नहीं, नहीं ये घर ऐसे नहीं बनेगा, ऐसे बनेगा। अरे आपको बिल्डिंग का ए, बी, सी, डी, मालूम नहीं है और आप अपनी सलाह दे रहे हो, कि ऐसे नहीं ऐसे होगा! इस संसार में सतयुग कैसे आएगा वह किसको पता है? बाबा को पता है। श्री कृष्ण पैदा कैसे होगा वह किसको पता है?(बाबा को ) तो आप अपना दिमाग काहे लगा रहे हो? आप अपना दिमाग क्यों लगा रहे हो? पैदा कैसे होगा? उसको पता है कि कैसे होगा? वह जानता है कैसे होगा? उसको मालूम है ना, तो आप क्यों बुद्धि लगा रहे हो। आप अपना काम छोड़कर दूसरे के काम को बोल रहे हो- नहीं-नहीं यह पिलर यहाँ नहीं आना चाहिए, यहाँ आना चाहिए। यहीं आएगा यह पिलर, और दूसरी जगह ही नहीं है पिलर आने की। इसका मतलब क्या है? वह भगवान है पिलर कहीं से भी निकाल सकता है। इसलिए अपने व्यर्थ के चिंतन को छोड़ो, और चिंता करो अभी, कि कहीं मैं पीछे ना रह जाऊँ? मेरा भाग्य बनना है, समय आ गया है। कहीं मेरी याद में कमी ना रह जाए। कहीं मैं बाबा के दिल से दूर ना हो जाऊँ। बाबा मेरे को सदा अपने दिल में बिठाए रखना। ऐसे, यह फ़िक्र होनी चाहिए। यह चिंतन अंदर में चलना चाहिए, कि बाबा जितना हो सके मुझे अपनी गोद में बिठा के रखना। अब वह क्या होगा... कैसे कृष्ण आएगा... कैसे स्वर्ग बनेगा.... वह आप नहीं सोचो। जैसे फॉर एग्जांपल कोई कुछ भी कर्म करता है, या कोई घर बना रहा है, तो घर बनाने वाले को मालूम है ना कि उस चीज को कहाँ करना है? आप बच्चे स्वर्ग बनाने में बाबा के सहयोगी हो, तो बाबा जिस तरीके से बोलता है आप बच्चों को उस तरीके से करना है। जब वह बन जाएगा तब आप देखना उस चीज को कि वह हुआ कैसे हैं? बाकी अपनी बुद्धि को लगाने में खर्च मत करो। कुछ भी चीज से डिस्टर्ब नहीं हो जाओ। अब कोई भी मूर्तिकार है, मूर्ति बना रहा है, तो वह तो मूर्ति बनी ही नहीं है ना। तो देखने वाला अगर उसमें नुक्स निकालने लगे - नहीं इस मूर्ति के हाथ ठीक नहीं है... अरे इसका तो मुँह ही ठीक नहीं बनाया... इसकी नाक ही ठीक नहीं बनी... तो मूर्तिकार क्या सोचेगा? जब बन जाएगा तब आप देखना कि इसमें क्या कमी है और क्या... इसलिए क्या करना है? बाबा जो बना रहा है, बहुत सुंदर मॉडल बना रहा है। मॉडल में रहने वाला विश्व का महाराजन भी आ रहा है। तो आप बच्चों को क्या सोचना है? वह बाबा देखेगा ना, मैं क्यों चिंता करूँ? बाबा बैठा है ना, मुझे क्या सोचना।इतनी चिंता नहीं करो, अब चिंतन करो कि मुझे बनना क्या है? समझ में आया?
दुनिया की हालत को देखो किस तरीके से बदल रही है। यह जो सबका जो बोलते हैं ना, आज देखो, आज से 50 बरस पहले किसी के बाल नहीं झड़ने थे। सच बता रहा हूँ! नहीं झड़ते थे। क्यों सब गंजे हो रहे हैं अभी? बताओ? केमिकल, खान-पान, और? गलत चिंतन, व्यर्थ चिंतन, और? यह सब मिक्स है, यह सब मिक्स है। यह जो फालतू की रेडिएशन, ऊर्जा जो दुनिया में घूम रही है वर्तमान समय में, वो सब के शरीरों पर अटैक कर रही है। सब यह जो ऊर्जा चारों तरफ आ रही है, यह जो टेलीफोन की ऊर्जा है, साइंस के साधन की ऊर्जा है, यह सबको खत्म कर रही है। आप इस ऊर्जा से बच सकते हैं। यह "ॐ" का उच्चारण.... जो बोलते हैं ना आवाज में नहीं आना, आवाज में नहीं आना, यह बहुत पावरफुल रेडिएशन है, जो आपकी तरफ जो ऊर्जा आती है, साइंस के साधन की जो ऊर्जा आती है, उस ऊर्जा को पूरी तरह से नष्ट कर देती है जब आप "ॐ" का उच्चारण करके वह ऊर्जा को क्रिएट करते हो। तो यह ऊर्जा उस ऊर्जा को टक्कर देकर के आपसे दूर करती है। इसीलिए हम आपको घड़ी-घड़ी बोलता हूँ कि आप अपने पास से टेलीफोन को दूर करके 20 मिनट या 10 मिनट "ॐ" का उच्चारण करो। आपको मालूम ही नहीं है कि इसमें ताकत क्या है। "ॐ" का उच्चारण करते हैं, ओम... ओम... ये कोई "ॐ" करते हैं? कोई आगे बोल रहा है, कोई पीछे बोल रहा है, कोई टेढ़ा बोल रहा है, कोई कुछ। एक स्वर में, एक ऊर्जा से, और मन की पावर से बैठकर "ॐ" की ध्वनि करना चाहिए । (संकल्प भी एक होना चाहिए बाबा) संकल्प एक होने से.... संकल्प तो छोड़ो अगर कंठ भी एक हो जाए तो वह भी कमाल करके दिखाए। कंठ ही टेढ़े-मेढ़े चलते हैं। दस एक लय में बोलते है, और एक जन एक लय में बोलेगा। इसको "ॐ" का उच्चारण कहते हैं? आप बोलते हो "ॐ" की ध्वनि में बहुत पावर है, आप सबको बोलते हो, आप प्रेक्टिकल तो करो ना उस चीज को। कितनी वारी बोल कर गया हूँ कि "ॐ" का उच्चारण जब करते हो, तो बहुत मन में ताकत और कंठ में ताकत होनी चाहिए। ऐसा नहीं कहूँगा कि चिल्ला चिल्ला करके करो। पर एक स्वर में करना चाहिए, जिससे चारों तरफ की जो ऊर्जा बनती है, उसमें देखो कितनी कमाल होगी।
बाबा एक दिन अमृतवेला बैठा था ओम के बारे में टचिंग हुआ कि संस्कारों का जो मिलन नहीं हो रहा, वो ओम नहीं मिल रहा है इसलिए संस्कार नहीं मिल रहे। तो यह क्या सही है?
अगर "ॐ" मिल जाएगा, संस्कार मिल जाएगा, क्योंकि ऊर्जा जब मिलती है एक साथ, तब बहुत सारी चीजे मिल जाती है। है ना।
तो आज से क्या करेंगे? कोई एक बच्चा बैठकर सामने जो बहुत अच्छे से "ॐ" करा सके। दो-तीन बच्चे ऐसे होने चाहिए कि बारी-बारी कोई कराये। सामने बैठकर "ॐ" की ध्वनि कराओ। दो बच्चे सामने बैठो, और "ॐ" का उच्चारण कराओ। आज से यह नियम रहेगा ठीक है। इस तरीके से, क्योंकि यह तो फिर ऐसे ही चलता रहेगा। है ना। तो ऐसे सबको और एक ही लय में सब बोलेंगे। आपको चेक करना है कि मेरा कंठ सबसे अलग क्यों भाग रहा है? उसको पकड़ो। सबसे अलग.... अगर 10 लोगों का कंठ एक आवाज में चल रहा है, तो उस दो या तीन उनको भी मिला करके चलना है 10 के साथ में। ऐसा नहीं है कि वह 10 एक के पीछे। नहीं, उनको एक लय से बोलना है। ठीक है। यह चीज हमने बच्चों में देखी है। कोई किधर दौड़ रहा है, कोई किधर दौड़ रहा है। आप कराओ बारी-बारी से, बारी बारी से सब कराओ। ठीक है। अच्छा और सब ठीक है ना?
क्या एक बात पूछूँ? क्या हम जो बोल रहे हैं, जो भी शिक्षा दे रहे हैं, क्या यह व्यर्थ पानी में तो नहीं बहेगी? क्या यह अंदर आएगी? हम देखूँगा। जैसे बाबा जो कहे "जी बाबा"! ऐसे आप बच्चे जो बाबा कहे "जी बाबा"! आप चलते रहो बस, सोचना नहीं की क्या गलत है, क्या सही। बाबा ने जो बोला ना वह श्रीमत है। यह नहीं सोचो कि कल्याण होगा या अकल्याण होगा। यह भी नहीं। सोचना ही नहीं है आपको। आप मानो बस रूहानी मिलिट्री के जवान हो। जैसे वहाँ पर एक ही आवाज में सब होते हैं ना। आप यह सोचो। जैसे बाबा कहे, जिस तरीके से बाबा चलाए। एक झटके से वह चीज को एक्सेप्ट करना है। अब यह नहीं सोचना है क्या होगा, क्या नहीं...। नहीं.... जो भी होगा उसका जिम्मेवार बाबा बैठा है। (बाबा प्रश्नचित नहीं प्रसन्नचित होकर बैठता है) हाँ! देखो एक प्रश्न होता है जानने की इच्छा से। दो प्रश्न होते हैं- एक होता है कि मुझे इस चीज की नॉलेज मिले, नॉलेज के आधार से पूछना। एक होता है संशय के आधार से पूछना। दोनों में बहुत फर्क होता है। समझ में आना चाहिए। कि एक होता है नॉलेज हो, मुझे जानने को मिले, या 10 बच्चों ने एक सवाल पूछा है, 10 में से पाँच संशय के आधार से पूछ रहे हैं, और पाँच जिज्ञासा के आधार से पूछते हैं। एक वह अलग होता है पूछना। और एक होता है चालाकी से पूछना- देखता हूँ कि बाबा को इसके बारे में पता है क्या ? ऐसे भी बच्चे है। ( बाबा का टेस्ट लेते है ) हाँ, बिल्कुल ऐसे भी हमारे बीच में बच्चे बहुत आए हैं, मिले भी हैं,और मिलते भी हैं। देखता हूँ बाबा को इस बारे में ज्ञान है क्या? अरे बुद्धू आपको समझ में नहीं है अभी। जिस दिन बैठेंगे तो उस दिन सब ज्ञान भी बाहर आ जाएगा। तो एक यह बच्चे होते हैं। और एक होते हैं इन सबसे भी पार जाकर के जो खुशी में नाचते हैं। इन तीनों चीजों से भी पार जाकर के उनको बोलते है प्रसन्न चित्त। वाह! हर चीज में खुशी है। जो मिलना था वह मिल गया अब क्या चाहिए? जो पाना था वह पा लिया अब क्या इच्छा रही। अब तो वह मेरा बन गया इस बात की खुशी ही काफी है। वह होते हैं प्रसन्नचित्त बच्चे। जिनका कोई प्रश्न नहीं । एकदम खुशी में आनंदमय बच्चे, जिनको किसी चीज का कोई संशय नहीं, कोई कुछ नहीं जानना। बस! एक मिल गया, एक को जान लिया सब कुछ जान लिया। तो इसलिए यह जो प्रश्न है, कभी-कभी... जैसे अभी बाबा ने क्या कहा? अरे जिस दिन मेरे सामने ऐसे बच्चे बैठे होंगे, उस दिन बाबा नहीं बोलेंगा वह बच्चे अंदर हाथ डालकरके आपे ही बुलवा देंगे। ऐसे बाबा के सामने जो बच्चे होते हैं ना, कि जिसके अंदर एकदम प्रेम में झूमने वाले, जिनके अंदर कोई संशय नहीं, जिनके कोई प्रश्न नहीं। बाबा भी उन्हीं को ही सारे राज खोलते हैं। कमाल का बाबा है, जिनको कुछ चाहिए नहीं उनको सब कुछ देता है। जिनकी कोई इच्छा नहीं उनकी सब इच्छा पूरी करता है। यह बाबा है। जिनको ज्ञान के अंदर भी कुछ चाहिए नहीं, जो सिर्फ प्रेमी है, उनके ऊपर ज्ञान की वर्षा करता है। और जो इच्छा, लालसा रखते है उनको कुछ नहीं बोलता । हाँ ठीक हो? खुश हो? सदा खुश रहो, बस, ओम नमः शिवाय! बाय-बाय!! पर जिनकी कोई इच्छा नहीं, उनकी सारी इच्छाएं पूरी होती है। जिनकी कोई कामना नहीं उनकी सर्व मनोकामनाएं पूरी होती है। क्योंकि बाबा को मालूम है कि अभी इसको क्या देना है। इसलिए जब गुरुकुल पहले थे ना, तो जब तक शिष्य पूरी तरह से तैयार नहीं हो जाता था, तब तक गुरु उसको राजविद्या नहीं देते थे। पहले उसको पूरा यह आंगन साफ कराते थे, या सारा दिन पत्ते चुगाते रहते थे, सब पत्ते चुगो। कुछ-कुछ चीजे करवाते थे उनको। फिर देखते थे हाँ अब यह योग्य है ना, अब इसकी कोई इच्छा नहीं है, तब उसको बैठ करके वह राज विद्या सीखाते थे। इसलिए हमारा जो बाप है ना। आप लगे रहो निस्वार्थ भाव से उसकी सेवा में। सारी इच्छाओं को त्याग दो, कोई इच्छा नहीं होनी चाहिए। वह आपे ही जो आपको चाहिए, जो आप बनने वाले हो, अपने आप ही आपको ऊपर उठाएंगा। इसलिए घड़ी-घड़ी बाबा क्या बोलते हैं मालूम है? "इच्छा कभी अच्छा नहीं बनने देगी"! क्यों बोलते हैं? "इच्छा कभी अच्छा नहीं बनने देगी"! कोई भी इच्छा, कोई भी इच्छा, मुझे यह चाहिए, मुझे ऐसा चाहिए, नहीं....। जो भी बाबा के घर से मिलता है, या जो भी होता है,अगर उसमें "जी" करके चलेंगे तो सारी इच्छाएं नष्ट हो जाएंगी। यह मत सोचना कि मैं पहले तो बहुत अच्छा रहता था, मैं पहले तो ऐसे रहता था बाबा के घर में।
अरे आपने देखा होगा ना, जब मंदिर में भक्त दर्शन करने जाते हैं, क्या होता है मालूम है, बेचारे कितने पैसे लेकर जाते हैं, तो जाते-जाते कोई फूल पत्ती वाले मिल जाते हैं, कोई माला वाले मिल जाते हैं, कोई चुनरी वाले मिल जाते हैं, तो वहीं पॉकेट खाली हो जाती है। मंदिर में जाते-जाते लास्ट में तो फिर सब कुछ जमा करवा लेते हैं, भई अपना सब कुछ जमा कर दो। फिर ही आप मंदिर के अंदर जाते हो। समझ में आया? क्या? बाबा की एक जड़ मूर्ति भी आपकी पॉकेट खाली करा लेती है, अपने पास जाते-जाते, मंदिर के अंदर में एंट्री करते-करते आपका सब कुछ खाली, पर्स, बैग, सब जमा कर दो। कोई कोई तो मंदिर ऐसे हैं कि जो कपड़े भी उतरवा देते हैं, कि आप मंदिर में कपड़े उतार के ही जाओ, कुछ नहीं जाना चाहिए। तो यह देखो ना, मतलब जड़ मूर्तियों में भी वह है कि भगवान के अगर घर में जा रहे हैं तो खाली हाथ जाना है। तो यह तो चैतन्य में आया है, तो आप भरतू कैसे जा सकते हो? कर्म के अनुसार भारतू जा सकते हो। खाली हाथ ही रहना है। ठीक है। समझ में आ रहा है ना? इसलिए सारी इच्छाओं को त्याग दो। जिन्होंने इच्छाओं को अभी तक नहीं त्यागा है, वह अभी भी बाबा से मिले नहीं है, याद रखना। आप भले मिलन कर रहे हो, बाबा आ रहे हैं, मिल रहे हैं, पर आपका मिलन नहीं हुआ है। अभी तक आप बाहर मंदिर में लाइन में ही खड़े हो, जिनके अंदर अभी भी इच्छाएं और यह सारी चीजे हैं। अभी भी मंदिर के बाहर ही खड़े हो। जब तक खाली नहीं होंगे, उस दिन होगा असली मिलन आपका। आप सभी याद रखना, भले आप हजारों जगह जाए, बाबा मिलन करो, जगह जगह जाकर बाबा मिलन करो, वह बाबा मिल रहा है, अभी तक आप नहीं मिले हो। आप उस दिन मिलेंगे जिस दिन आप पूरी तरह समर्पण, "सर्व समर्पण" बाबा पर हो जाएंगे। जिस दिन कोई कामना और कोई इच्छा अंदर में नहीं रहेगी। कोई लालच, कोई लोभ, कोई देह अभिमान अंदर में नहीं रहेगा, उस दिन आप सही मायने में बाबा से मिलेंगे। यह याद रखना। यह आज हम लिख कर दे रहा हूँ। अगर आप सोचते हो कि हम मिल गए हैं बाबा से, हम इतनी बार मिले हैं, तो मैं कहूँगा कि एक बार भी मिले नहीं है। अभी तक आप मिले ही नहीं है। अभी तक आपकी भेंट ही नहीं हुई है उनसे। वह तो वह आता है, उसके एक मिलन में कोई एक बच्चा बैठा होगा, कि जिसकी सारी इच्छाएं खत्म! सोचो वह क्यों जगह-जगह सभी बच्चों से मिल रहा है? वह मिल रहा है, ताकि वह कहेगा कि देख मैं तो मिला था आपसे, आप ही ने ही त्याग नहीं किया, आप ही श्रीमत पर नहीं चले।याद रखना हम घर बार का त्याग नहीं बोल रहे हैं, हम अंदर की इच्छाओं का त्याग बोल रहे हैं। यह जो अंदर में, हर छोटी-छोटी चीज में इच्छा जागृत होती है, यह होना चाहिए, ऐसे होना चाहिए। यह इच्छा अगर पूरी नहीं हुई तो दूसरे तरीके से उसको पूरा करने का प्रयास करेंगे। वहाँ से पूरी नहीं हुई तो दूसरे और के पीछे भागेंगे उसको पूरी करने के लिए। यह इच्छाएं, जो बेचैन करके रखती हैं। यह इच्छाएं। आप कर्म करो, बस कर्म करो, जो हुआ वो भी ठीक है, जो नहीं हुआ वह भी ठीक है। इस इच्छाओं से परे उठ जाओ और फिर देखो कि बाबा क्या कमाल करता है! समझ में आ रहा है? ऊपर से तो नहीं जा रहा? नहीं जा रहा है ना ऊपर से?
अच्छा और बताओ सभी ठीक है ना। खुश है?
बाबा मिलन में जो बच्चे आए थे बाहर से, सबका मैक्सिमम प्रश्न है कि कृष्ण कैसे आएगा ?
अभी तो हमने यही बताया ना, वह सवाल ही नहीं, उसको खत्म ही कर दो कृष्ण कैसे आएगा। आप देखो, कोई आपको आकार के पूछे कृष्ण कैसे आएगा, और आप हड़बड़ी में जवाब उल्टा-पुल्टा दे दो, तो यह भी तो गलत हो जाएगा ना। तो आप क्या कहो भई स्वर्ग बनाने वाले को पता है कि कृष्ण कैसे आएगा, मैं नहीं जानता। क्यों श्रीमंत! क्या कहना है? स्वर्ग बनाने वाले को पता है कि कृष्ण कैसे आएगा। उसको मैं नहीं जानता। जब बाबा ने जवाब नहीं दिया आज तक कि कैसे आएगा, तो मैं कौन होता हूँ जवाब देने वाला कि वो कैसे आएगा? वह तो वही जाने की कैसे आएगा? अब एक मूर्तिकार है, आप पूछो यह मूर्ति कैसे बनेगी? वो तो मूर्ति बनाने वाले को पता है ना कि वह मूर्ति कैसे बनेगी? आप जान भी लोगे कैसे बनेगी, वह बता भी जायेगा, तो थोड़ी आपको समझ में आएगा। जो उसको बारीक तरीके से जानता है, वह तो उसको पता है। तो यह सवाल हर किसी के अंदर से खत्म हो जाना चाहिए, नहीं तो वह फेल की लिस्ट में आएंगे। याद रखना। वह फेल की लिस्ट में आएंगे जिनका घड़ी-घड़ी यह सवाल उठता है कि कैसे आएगा। फिर बड़ी प्रॉब्लम होगी आगे चलके , कहेंगे बाबा ऐसे कैसे हो गया? क्योंकि आप भी तो कब से कैसे आएगा, कैसे आएगा, ऐसे कर रहे थे ना, इसलिए ऐसे हो गया! तो इसलिए यह सवाल खत्म हो जाना चाहिए। किसी के मुख से यह नहीं निकलना चाहिए कि कैसे आएगा? (जब बाबा उत्तर ही नहीं दिए हैं तो हम क्यों बोले!) उत्तर की बात ही नहीं है ना, भई उसको पता है कैसे आएगा? बाबा जानता है ना, वह स्वर्ग बना रहा है, तो स्वर्ग में किस तरीके से क्या होगा, वो, वह जानता है।
बाबा डॉक्टर आए थे उन्होंने पूछा कि यह तो एक पुरुष और प्रकृति के मिलन से जो होता है बच्चा आता है, तो कैसे पॉसिबल है? मैंने बोला अभी देखो मोबाइल में हम डाटा, वाई-फाई ब्लूटूथ से कितने बड़े बड़े गाने वीडियो भेज देते हैं, टच तो नहीं होता, बाबा का साइंस तो क्या होगा! पता ही नहीं सतयुग का साइंस ?
देखो वही तो सतयुग का साइंस क्या होगा, वह भी एक चमत्कारी रूप से जिसको आज लोग चमत्कार बोलते हैं ना, वह ऐसे ऐसे नमूने तो छोटे-छोटे बच्चे भी सतयुग में कर देंगे। तो इसलिए यह चीज पर जाओ ही नहीं दिमाग में की कैसे आने वाला है? ठीक है। यह एक के मन में नहीं है, यह जितने भी आते हैं ना, सबके मन में है। जैसे कि पता नहीं उनको क्या करना है? अभी हम क्या कहूँ... ठीक है। अच्छा बच्चों अभी हम चलता हूँ, फिर मिलेंगे.... "ॐ".... सदा खुश रहो। ओके! ओके माना ओके। अच्छा....